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क्यों न हो यथा वर्तमान काल में जैपुर आदिक बमेश नगरों में एक किस्म के मसालोकी बत्ती वाली लाल टेने लग रही है और नगर के बाहर उसी प्रकार के (मुकाबले के) मसाले के बम्बो में से कला के जोर धूआं निकख हरेक स्थान नगर में विस्तर होता है परंतु उस मसाले की लाग के प्रयोग लाल टेंन की बतीको ही प्रकाश देता है और को नही जैसे ही पूर्वोक्त अंतःकरण में कर्म रूप मसाखा और योनी की धातुकी यथा प्रकार होने से उत्पत्ति होती है. और उसी अन्तकरण को जैन में तेजस कारमाण सूक्ष्म शरीर कहते हैं. तो उस तेजस कारमाण के प्रयोग से मातापिता के रज, वीर्य अथवा पृथिवी और जल के संयोग से शीत-नष्ण के मुनासिब होने के निमित्तों से स्थूल देद जाति रूप वाला वन जाता है, जैसे मनुष्य से मनुष्य, पशु से पशु, घोमे से घोम्स, बैल से मेव, अथवा गेहूं से मे.