Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 259
________________ 4 [न रखना] और नङ्गेपांव नूमि शय्या, तथा काष्ठ शय्या का करना. फलफूल आदिक और सांसारिक विषय व्यवहारों से अलग रहना, पञ्च परमेष्ठी का जाप करना धर्म शास्त्रों के अनुसार पूर्वोक्त सत्य सार धर्म रीति को ढुंमकर परोपकार के लिये सत्योपदेश यथा बुद्धि करते हुए देशांतरो में विचरते रहना एक जगह मेरावना के मुकाम का न करना ऐसी वृत्ति वालों को साधु मानते हैं। ज-श्रावक (शास्त्रं सुनने वाले) गृहस्थियों का धर्म। . ८-श्रावक पूर्वोक्त सर्वज्ञ नाषित सूत्रानुसार सम्यग् दृष्ट में दृढ हो कर धर्म मर्यादा में चलने वालों को मानते हैं अर्थात् प्रातःकाल में परमेश्वर का जाप रूप पाठ करना अनयदान, सुपात्रदान का. देना सायंकालादि में सामायक का करना फूलका न बोलना, कम न तोलना जूठी गवाही का न देना चोरी का न करना, परस्त्री का गमन न करना स्त्री. योने परपुरुष को गमन न करना अर्थात् अपने पतिके परन्त सब पुरुषो को पिता बंधु के समतुल्य समजना जूए का न खेलना, मांस-का न खाना,

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