Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 257
________________ ३. कर सर्वज्ञता, सदैव सर्वानन्द में रमन रहने को 1 मानते हैं अर्थात् मुक्ति के साधन धन और कामनी के त्यागी सन्त गुरुयोंकी, सङ्गत करके शास्त्र द्वारा जम चेतन का स्वरुप सुनकर संसारिक पदार्थों को अनित्य [ते] जान कर उदासीन होकर सत्य संतोष दया दानादि सुमार्ग में इच्छा रहित चल कर काम क्रोधादि पर गुन के अन्नाव होने पर आत्म ज्ञान में लीन होकर सर्वारंन परित्यागी अर्थात् हिंसा मिथ्यादि के त्याग के प्रयोग से नये कर्म पैदा न करे और पुरःकृत [पहिले किये हुये कर्मों का पूर्वोक्त जप तप ब्रह्मचर्यादि के प्रयोग से नाश करके कर्मों से अलग दोजाना अर्थात् जन्म मरण से रहित होकर परमपवित्र सच्चिदानन्द रूप परमपदको प्राप्त हे ज्ञान स्वरूप सदैव परमानन्द में रमन रहने को मोक्ष मानते हैं. g - साधुयों के चिन्ह और धर्म । - पञ्चम (पांच महाव्रत के ) पालने वालों को साधु कहते हैं. ६ ! { , . अर्थात् श्वेत वस्त्र, मुख वस्त्रिका मुखपर वां धना, एक जन आदि का गुच्छा (रजोहरण ) जीव

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