Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 261
________________ । करुणा (दया) करे अर्थात् अपना कल्प धर्म रख के यथा शक्ति उनका दुःख निवारण करे ३ मैत्री ताव सबसे रक्खे अर्थात् सब जीवों से प्रियाचरण करे किसी का बुरा चिंते नहीं ॥ ४॥ १०-यात्रा धर्म ॥ १०-यात्रा चतुर्विध संघ तीर्थ अर्थात् ( चार तीर्थों ) का मिल के धर्म विचार का करना उसे यात्रा मानते हैं अर्थात् पूर्वोक्त साधु गुणों का धारक पुरुष साधु १ तैसे ही पूर्वोक्त साधु गुणोंकी धारका स्त्री लाध्वी र पूर्वोक्त श्रावक गुणोंका धारक पुरुष श्रावक ३ पूर्वोक्त श्रावक गुणों की धारका स्त्री श्राविका ४ श्नका चतुर्विध संघ तीर्थ कहते हैं इनका परस्पर धर्म प्रीति से मिल कर धर्म का निश्चय करना उते यात्रा कहते हैं और धर्म के निश्चय करने के लिये प्रश्नोत्तर कर के धर्म रूपी लान्न उगने वाले ( सत्य सन्तोष हासिल करने वालों ) को यात्री कहते हैं अर्थात् जिस देश काल में जिस पुरुष को सत्न सं. गतादि करके आत्मज्ञान का लान हो वह तीर्थ । न्यथा चाणक्य नीति दर्पण अध्याय १५ श्लोक में

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