________________
शश
.
के अनन्तर अर्थात् मुर्दा नी देख सकता.क्यों कि मुर्दे की नी तो अल्पकाल तक वैसी ही आंखें बनी रहती हैं. बस वही ठीक है जो हम ऊपर लिख चुके हैं, कि कर्म अनुबन्ध
जीव इन्द्रियों के निमित्त से अर्थात् जीव इ'निस्य इन दोनों के मिलाप से देखने आदि ।
की क्रिया सिह होती है. ' . . (२०) .
नास्तिकः-अजी! मैं आपसे फिर पूबता हूं कि कर्मानुबन्ध जीव परलोक आदि पूर्व कृत कैसे भूल जाता है ? कोई दृष्टान्त दे कर सविस्तर समझा दोजिये.
जैनी: दृष्टान्त तो हम पहिले दी पांच लिख आये हैं लो अब और नी विस्तार पूर्वक सुनो. यथा, राजग्रह नगर में किसी एक घनी पुरुष शिवदत्त के पुत्र देवदत्त को कुसझं के प्रयोगसे मद्यपान करने का व्यसन पम