Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 252
________________ २३२ सरी योनि में कर्मानुसार उत्पन्न होता है तब पूर्वोक्त कारण से परलोक को भूल जाता है.' और जियादह शरीर और जीव के न्यारा : होने में ज्ञात होने की आवश्यकता हो तो सूत्र श्री रायप्रसैनी जी के दूसरे अधिकार में : परदेशी राजा नास्तिक के ग्यारद प्रश्न और श्री जैनाचार्य केशी कुमारजी आस्तिक की ओरसे उत्तरों में से प्राप्ति कर लेना; इस ज- : गह पुस्तक बमा होने के कारण से विशेष कर .. नहीं लिखा गया और हमारी तर्फ से यह शिक्षा नी स्मरण रखने के योग्य है कि यदि तुमारी बुदिमें परलोक नहीं नी आवे तो जी परलोक अवश्यही मानो, क्यों कि जो परमेश्वर और परलोक को नहीं समझेगा अर्थात् नहीं मानेगा, तो वह पापों से अर्थात् बालवात आदि अगम्य गमनादि कुकर्मो से कनी नहीं बच

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