Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 248
________________ “२३०. गयाथा; एक समय मद्यपान कर बाजार में से. जा रहा था, तो उसके मित्र ने उसे अपनी में कान पर बैठा लिया, और मोदक वा पेमे आदिक खिलाये. उसने आदरका और मिगई - आदि खानेका अपने मन में अति सुख माना. फिर आगे गया तो उसे किसी एक पुरुष ने पूग कि आज तो तुम्हें मित्र ने खूब लमू खिलाये, तो उस मद्यपने जब वर्तमान समय लडू आदिक खाये थे तब उसकी, चेतनता अर्थात् बुद्धि जिस धातु (मगज) से काम ले रही थी अर्थात् मित्र के सत्कार को अनुन्नव कर रही थी, सो उस धातु (मगज). के मादेपर उस मदिरा के पुद्गल (जौहर) मेदकी गर्मी से नड कर मगज की धातु को रोकते थे, तां ते वह अपने अतीत काल की । व्यतीत बात को स्मरण नहीं रख सकता था, __ तांते वह पूर्वोक्त सुखों को भूला हुआ यों बोला, कि मुझे किस ऐसे तैसे ने लडू खिला

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