________________
परन्तु पक्ष में तो यों जैनी कहेंगे कि जैन पदिले है और वेदानुयायी कहेंगे कि वेद पहिले है और मतवाले कहेंगे कि हमारा मत पहिले है. यह तो ऊगमा ही चला आता है; जेसे कोई कहता है कि मेरे वमों के हाथ की सन्दुक वढुल पुरानी है, और पीलीय अशरफीयों की भरी हुई है परन्तु ताले बन्द है, दूसरा बोला कि, नहीं, तुम्हारे नीली अशरफियों की है, हमारे वमों की पीली है. यों कहर कर कितने ही काल तक झगडतेरहो क्या सिध होगा? योग्य तो यों है कि सना के बीच अपनी सन्दूक खोल धरें; ते सत्नासद स्वयं ही देख लेंगे कि पीली किसकी हैं और नीली किसकी हैं.
और बुद्धिमानों की विद्याप्राप्ति का सारनी यही है कि परस्पर धर्म लेह आकर्षण बुद्धि से, सत्य, असत्य का निर्णय करें; तिर सत्य को ग्रहण करें, और असत्य को त्यागे; जिससे यह मनुष्यजन्मनी सफल होवे. परन्तु ऐसा
-