Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 236
________________ और जगत् बना रहेगा, और इनके पीछे के , लिये यत्न करना मूर्खता है. जैनी:-देखो इन वेदान्त मतवाले नास्तिकों की बुद्धि कैसे मिथ्यारूप भ्रम चक्र में पम रही हैं ? नला, किसी पुरुष को स्वप्न दुआ कि मेरा मित्र मेरे घर आया है, और मैने उसे सुवर्ण के थावं में बूरा चावल जिमाये हैं, फिर उसकी नींद खुल गई, तो कदो नास्तिकजी! क्या उसके घर का और मित्रादिक का नाश हो गया? . नास्तिक:-नहीं. " जैनी:-तो तुम्हारा पूर्वोक्त लिखा मि-.. थ्या रहा, जो तुमने लिखा है कि स्वप्न के अनन्तर स्वप्नवाले पदार्थ नाश हो जावेंगे. - ... नास्तिकः—उस समय तो वहां मित्र नहीं रहा, और जो उसने सुवर्ण का थाल अनहुआ स्वप्न में देखा था वदनी न रहा. जैनीः-अरे मूर्ख! मित्र जस बक्त नहीं , . -~-~~..........

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