Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 230
________________ . १३. . . . . . . . . पशु होते हैं. .. जैनीतुम तो पूर्वोक्त एक ब्रह्म के "सिवाय दूसरा जीव आदिक कुच्छ जी नहीं. मानते हो, तो क्या ब्रह्म ही जन्म लेता है? और वद आप ही अनेक रूप हो कर पशु,शूकर, कूकर, (सूअर, कुत्ता,) आदिक योनियों में विष्ठा आदिक चरने की सैर करता है ? बस जी, बस ! नास्तिक जी! क्या कहना है ? नला यद तो बताओ कि जो घटवत् शरीर जमरूप है वह योनिये नोगता है या उसमें प्रतिबिम्ब रूप ब्रह्म है वह योनियें नोगता है ? - (नास्तिक विचार में पड़ा.). - नास्तिकः-अध्याय ठे के १०० वें पृष्ठ में श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य श्री शंकराचार्य जी महाराज शिवजी का अवतार हस्तामलक आनन्द गिरिसे आदिले कर बदुत ग्रंथों में हमारा मतं प्रसिद्ध है. जैनी-ओहो ! वही श्री शंकराचार्य

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