Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 229
________________ t २१२ ( ६ ) नास्तिक: - १०२ पृष्ठ में हम आधे श्लोक कोटि ग्रंथों का सार कहेंगे. क्या 'ब्रह्मसत्यं 1 जगन्मिथ्या' बस, ऐसा कहनेवाला जीव ही ब्रह्म है; अपर कोई ब्रह्म नहीं है. जैनी :- देखो इन नास्तिकों की व्यामोहता (बेहोशी). पहिले तो कह दिया कि ब्रह्म सत्य है और जगत् केवल मिथ्या है, प्रर्थात् ब्रह्म के सिवाय जीवादिक कुछ भी नहीं. और फिर कहा कि यों कहने वाला जीव दी ब्रह्म है, और कोई ब्रह्म नहीं है. अब देखिये जीव ही को ब्रह्म मान लिया, और ब्रह्म की नास्ति कर दी. असल में इन बेचारे नास्तिकों के ज्ञान नेत्र ज्ञानसे मुंदे हुए हैं, तां तें इन्हें कुच्छ भी नहीं सकता. (6) 7 नास्तिक: - जीव देढ़ के त्याग के प्र नन्तर पुण्यलोक ब्रह्मपुरी, वा मनुष्य, वा 4 L

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