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ए अर्थात् तोल में पचीस मन का काठ का पोरा होगा, वह भी लघु अर्थात् हलू की पर्याय के कारण से जल पर तैरता ही रहेगा. अब सोच कर देखो कि कहां तो ५ रत्ती जर बोझ; और कहां ३५ मन ? परन्तु पर्याय का स्वन्नाव ही है.
आरियाः-अजी ! स्वन्नाव नी तो ईश्वर ने ही बनाये हैं!
जैनी:-अरे नोले ! तूं इतने पर जी न समझा. यदि ईश्वर का बनाया स्वनाव होता तो कनी न पलटता. परन्तु हम देखते हैं कि उस ५ रत्ती नर धातु की मनुष्य चौमी कटोरी बना कर जल पर रख देवे तो तैरने लगे, और काष्ठ को फूंक कर नस्म (राख) को जल में घोल देखें तो नीचे ही जा लगेगी. अब क्या ईश्वर का किया हुआ स्वन्नाव मनुप्य ने तोन दिया ? अपि तु नहीं, यद. तो क्रिया विशेष करने से नी मिशरी के कूजों के