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में जैन मत के तथा अन्य और मतों के शास्त्रों में भी पूर्वोक्त कथन लिखा है...
आरिया:--किस प्रकार से?
जैनी:-जैन सूत्र श्री उत्तराध्ययन: वे अध्ययन ३७ वी गाथा में लिखा है:
गाथा.
अप्पा कत्ता विकत्ताय दुहाणय सुहाणय अप्पामित्त ममित्त च दुप्पटिउ सुप्पाहि ॥ ३७ ।
अपनी आत्मा अर्थात् जीव ही कत्त है, जीव ही विकर्ता विनाश काय अर्थात कर्मा को नोग के निप्फल करता है. किसक कत्ता नोगता है दुष्ट का का फल दुःखों ताई ओर श्रेष्ठ कला का फल सुखों के तां आत्मा ही भित्र रूप सुख देने वाली होती है आत्मा ही शत्रु रूप सुःख देने वाली होती है. परन्तु किसी पुष्ट संग अथवा धर्मति
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