Book Title: Sahityadarpanam
Author(s): Sheshraj Sharma Negmi
Publisher: Krushnadas Academy
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५०४
साहित्यदर्पणे
यत्र तुल्याययुक्तेन वाक्येनाभिप्रदर्शनात् ।। १७७ ।। साध्यतेऽभिमतश्वार्थस्तदुदाहरणं
प्रतम् ।
यथा
'अनुयान्त्या जमातीतं कान्तं साधु त्वया कृतम् । . का दिनश्रीविनार्केण १ का निशा शशिना विना ? ' हेतुर्वाक्यं समासोक्तमिष्टकुद्धेतुदर्शनात् ।। १७८ ।। यथा वेण्यां भीम प्रति
चेटी-एवं मए भणिदं-'भाणुमदि! तुह्माणं अमुक्केसु केसेसु कह देवीए केसा संजमिअन्तित्ति'।
उदाहरणं लक्षयति-पत्रेति । यत्र, तुल्याऽर्षयुक्तेन = समानविषयसहितेन, वाक्येन, मभिप्रदर्शनाद - अभिप्रायप्रकाशनात् ॥ १७७ ।।
अभिमतः = अभीष्टः, अर्थः, साध्यते - प्रतिपायते, तद, "उदाहरणं" नाम लक्षणं मतम् ।
उदाहरणमुदाहरति-अनुयान्त्येति । पतिमनुयान्तीं कांविधायिकां प्रति तसख्या उक्तिरियम् । जनाऽतीतं = गुणगणाऽतिशयेनाऽतिकान्तलोक, कान्तं = पतिम्, अनुयान्त्या = अनुसरन्त्या, त्वया = भवत्या, साधु-समीचीनं, कृतं - विहितम् । तथा
अर्केण विना = सूर्यमन्तरेण, दिन पीः - दिवसकोभा, का? तथैव, शशिना विना= चन्द्रमन्तरेण, का, निशा = रात्रिः ?। अत्राऽक विना दिनश्रीरिव शशिनं विना निशा• श्रीरिव कान्तं विना कान्ताऽपि शोभारहितेति साध्यते, अत उदाहरणमिति भावः।
हेतु लक्षति-हेरिति। हेतुदर्शनात =कारणप्रदर्शनात्, समासोक्तं - संक्षेपेण प्रतिपादितम्, इष्टकृत = अभीष्टाऽर्थबोधकं, वाक्यं, "हेतुः" ॥ १७८ ।।
हेतुमुदाहरति-यति । एवं मया भणितं "भानुमति ! युष्माकममुक्तेषु केशेषु कथं देव्याः केशाः संयम्यन्ते"। इति संस्कृतच्छाया । अत्र द्रौपदीकेशाऽसंयमनस्य हेतुर्मानुमतीकेशाऽमोक्षणं, तच्च दुर्योधने हत एव देव्या: केशसंयमो भविष्यतीत्यभिमताऽर्थबोधः ।
उदाहरण-जहां समान विषयसे युक्त वाक्यसे अभिप्रायके प्रकाशनसे ।१७।अभीष्ट अर्थकी सिद्धि की जाती है उसे "उदाहरण" कहते हैं ।
जैसे-लोकोत्तर गुणोंसे सम्पन्न पतिको अनुसरण करनेवाली तुमने उचित किया । सूर्यके विना दिनकी शोमा क्या? और चन्द्र के विना रात्रिकी शोभा ही क्या ?
हेत-कारणके प्रदर्शनसे जहाँपर संक्षेपसे प्रतिपादित अभीष्टका बोधक वाक्य हो उसे "हेतु" कहते हैं ।। १७८॥
जैसे वेणीसंहारमें भीमके प्रति चेटी-मैंने ऐसा कहा- भानुमति ! आपोगों के मुक्त न होनेपर कैसे द्रोपदीके केश बांधे जाते हैं"।

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