Book Title: Sahityadarpanam
Author(s): Sheshraj Sharma Negmi
Publisher: Krushnadas Academy
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५०२
- साहित्यदर्पणे
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दाक्षिण्यानुनयो मालार्थापत्तिर्ग]णं तथा ।
पृच्छा प्रसिद्धिः सारूप्यं संक्षेपो गुणकीर्तनम् ॥ १७४ ॥ _ लेशो मनोरथाऽनुक्तसिद्धिः प्रियवचस्तथा।
लक्षणानि--गुणः सालंकारयोगस्तु भूषणम् ॥ १७५ ॥ यथा-'आक्षिपन्त्यरविन्दानि मुग्धे ! तव मुखश्रियम् ।
कोषदण्डसमप्राणां किमेषामस्ति दुध्करम् ॥' ____ वर्णनाऽक्षरसंघातश्चित्रार्थैरक्षरैपितैः । पाक्षिण्यादारभ्य गुणकीर्तनं यावत् दश ।। १७४ ।।
लेशमारभ्य प्रियवयी यावत चस्वारि समष्टया षट्त्रिंशत्संख्यकानि लक्षणा. युद्दिष्टानि ॥
भूषणं लक्षपति-गुणरिति । साऽलङ्कारः = उपमाबलङ्कारसहितः; गुणैः = माधुर्यादिभिः, योगः = सम्बन्धः, "भूषणम्" ॥ १७५ ॥ .
भूषणमुदाहरति-पाक्षिपन्तीति । कविनायकः काञ्चिन्नायिका कथयतिहे मुग्धे -हे सुन्दरि , परविदानि = कमलानि, तव = भवत्याः, मुखश्रियं = बदन थोमाम, बाक्षिपन्ति =निन्दन्ति । अर्थान्तरम्यासेन समर्षयते-कोषेत्यादिः । कोषदण्ड. सममाणा- कोषः (बीजकोष एव कोषः - धनापारम् ) दण्डः ( नालम् एव दण्ड:चतुर्वोपायः) ताभ्यां समग्राणाम् (सम्पूर्णानाम् ), एषाम् = अरविन्दाना, fo= कार्य, दुष्करं = दुविधेयमस्ति । बत्रायश्लेषमूलोऽर्थान्तरन्यासोऽलहारो माधुर्य व गुणः । अनुष्टुत्तम् ।।
बबरसंघातं लक्षयतिर्णनेति। वित्रायः - विविधाय:, मितेः = अल्परिति मावा, अक्षरः = वर्गः, वर्णना = वर्णनम् "अक्षरसंघातः"।.
दाक्षिण्य गुण कीर्तन तक दश ॥ १७४॥ मेशसे प्रियवयन तक, इस प्रकार समष्टि रूपसे लक्षणके छत्तीस भेद होते हैं। भवण-बलर और गुणोंके योगको "भूषण" कहते हैं ।। १७५ ॥
जैसे कोई नायक नायिकासे कहता है-कमल तुम्हारी मुखकी शोभाका हरण करते हैं । जैसे कोश (खजाना) बोर दण्ड (सेना) से युक्त राजा लोग दूसरोंकी
सुम्पत्ति हर लेते हैं उसी तरह कोश ( बीजकोष) और दण ( मृणाल ) से पूर्व 'इन (कमलों) के लिए क्या दुष्कर है ?॥
. अक्षरसंघात-विपित्र बोंवाले परिमित अक्षरोंसे वर्णन करनेको "अक्षर. संघात" गते हैं।

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