Book Title: Sahityadarpanam
Author(s): Sheshraj Sharma Negmi
Publisher: Krushnadas Academy
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________________ षष्ठ परिच्छेदा -. .. 581 भारतीवृत्तिबहुलं श्रीतिशब्देन संकुलम् / मतं श्रीगदितं. नाम विद्वद्विरुपरूपकम् / / 294 // यथा-क्रीडारसातलम् / श्रीरासीना श्रीगदित गायत्किंचित्पठेदपि / एकाको भारतीप्राय इति केचित्प्रचक्षते / / 295 // ऊसमुदाहरणम्। अथ शिल्पकम्.. चत्वारः शिल्पकेटाः स्युश्चतस्रो वृत्तयस्तथा / .' अशान्तहास्याच रसा. नायको ब्रामणो मतः / / 296 // भारतीवृत्तिबहुलं = भारतीवृत्या बहुलम् (प्रचुरम् ) / श्रीतिशब्देन-श्रीपदेन . क्वचित् "प्रीतिपदेने"ति पाठान्तरम् / सङ्कुलम् (ज्याप्तम् ) / एतादृशमुपरूपक विद्भिः = विपत्रिद्भिः , श्रीगदितं नाम, मतम् = अभिमतम् // 294 // यथाकीडारसातलम् / . श्रीगदिते मतान्तरेण लक्षणं प्रदर्शयति-श्रीति / श्रीगदिते - उपकपकविशेषे; आसीना = उपविष्टा, श्री: - लक्ष्मीवेषशारिणी मटी, किश्चिद्गायेत्, किश्चित्पठेदपि / तथा श्रीगदिते, भारतीप्रायः = भारतीवृत्तिप्रचुरः, एकाडो भवति इति, केचित् - विद्वांसः, प्रचक्षते = प्रवदन्ति // 295 // __ शिल्पकं लक्षयति-चत्वार इति / शिल्पके = उपरूपकविशेषे, चत्वारोऽा: - सया चतस्रो वृत्तयः= कैशिक्याद्याः, अशान्तहास्याः= शान्तहास्यरहिताः; रसाः= शुजारादयः, स्युः भवेयुः / ब्राह्मणो नायकः मतः // 296 // .... * . इसमें भारती वृत्ति प्रचुर होती है इसमें 'श्री' शब्द प्रचुर रूपसे रहता है। "श्री" शब्दसे व्याप्त इस उपरूपकको विद्वानोंने श्रीगदित माना है / / 294 // जैसे-क्रीडारसातल। - मतान्तर-धीगदितमें बैठी हुई, श्रीवेष धारण करनेवाली नटी कुछ गाती है और कुछ पढ़ती भी है। इसमें भारती वृत्ति प्रचुर होती है और एक अङ्क होता है। ऐसा कुछ विद्वान् काते हैं / / 295 // . उदाहरण हूँढना चाहिए। शिल्पक-शिल्पकमें चार अङ्क होते हैं और भारती आदि चार वृत्तियां होती हैं, शान्त और हास्यको छोड़कर शृङ्गार आदि अन्य रस होते हैं, ब्राह्मण नायक शेता है / / 296 //

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