Book Title: Sahityadarpanam
Author(s): Sheshraj Sharma Negmi
Publisher: Krushnadas Academy

View full book text
Previous | Next

Page 662
________________ षष्ठः परिच्छेदः देवी भवेत्पुनज्येष्ठा प्रगल्भा नृपवंशजा // 271 // पदे पदे मानवती, तद्वशः सङ्गमो द्वयोः / वृत्तिः स्यात्कैशिकी, स्वल्पविमर्शाः सन्धयः पुनः // 272 / / द्वयोर्नायिकानायकयोः। यथा-रत्नावली-विद्धशालभञ्जिकादिः / अथ त्रोटकम् सप्ताष्टनवपञ्चाङ्क दिव्यमानुपसंश्रयम् / / - त्रोटकं नाम तत्प्राहुः प्रत्यङ्क सविदूषकम् // 273 // प्रत्यङ्कसविदूषकत्वादत्र शृङ्गारोऽङ्गी। सप्तताङ्क यथा-स्तम्भितरम्भम् / पश्चाङ्कं यथा-विक्रमोर्वशी। परायणत्वेनेति शेषः / देवी-कृताऽभिषेका राज्ञी, प्रगल्भा "स्मराऽन्धा." (138 पृ० ) इत्यादिलक्षणलक्षिता, नृपवंशजा-राजकुलोत्पन्ना, ज्येष्ठा-नवप्रणयोपेताया नायिकाया ज्यायसी, भवेत् / / 271 // सा च ज्येष्ठा नायिका, पदेपदे - प्रतिपदं, मानवती = अभिमानसंपन्ना, भवेत, द्वयोः उभयोः, नवनायिकानायकयोरिति भावः, सङ्गमः = समागमः, भवेत् / वृत्तिश्च कैशिकी = "या श्लक्षणेत्यादि ( 480 पृ० )" लक्षणलक्षिता, स्वल्पविमर्शा: = स्तोकविमर्शसन्धियुक्ताः, सन्धयः- मुखप्रतिमुखगर्भोपसंहृतिसन्धयः, भवन्तीति शेषः / / 272 // नाटिकामुदाहरति-यथा रत्नावली-विद्धशालभञ्जिकाऽऽदिः / त्रोटकं लक्षयति-सप्ताष्टेति / सप्ताऽष्टनवपञ्चाक-सप्त, अष्टो, नव पञ्च वा. अङ्काः यस्मिस्तत् / दिव्यमानुषसंश्रयं देवमनुष्योभववृत्ताश्रितं, तथा प्रत्यक्षं सर्वेष्वपि. अङ्केषु, सविदूषक-विदूषकसहितं, तत्-तादृशमुपरूपकं त्रोटकं नाम, प्राहुः // 273 / / विवृणोति-प्रत्यकेति / अत्र= त्रोटके, अङ्गी-प्रधानरसः / राजकुल में उत्पन्न रानी जेठा और प्रगल्मा होती है / / 271 / / वह ( रानी ) पद पदमें मान ( अभिमान ) करती है राजा और नई गज. कुमारी इनका सगम रानीके ही वशमें रहता है। इसमें कैशिकी वृत्ति होती है, और अल्प विमर्शवाली अन्य सन्धियाँ होती है / / 272 // ___ जंसे रत्नावली और विद्धशाल भजिका आदि / त्रोटक - सात, आठ, नो वा पांच अङ्कोंसे युक्त देवता और मनुष्यसे युक्तः तथा प्रत्येक अङ्कमें जहाँ विदूषक रहता है उसे "त्रोटक" कहते हैं / / 273 // . प्रत्येक अङ्कमें विदूषकके रहने से इसमें शृङ्गार रस प्रधान होता है। सात अजू, जैसे स्तम्भितरम्भमें, पांच अङ्क जैसे विक्रमोर्वशीमें /

Loading...

Page Navigation
1 ... 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690