________________
साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
.
...
.HT
T
mnt
(१६) भट्टारक श्रुतकीति--ये नंदी संघ बलात्कार गण और सरस्वती गच्छ के विद्वान थे। ये त्रिभुवन मूर्ति के शिष्य थे । अपभ्रंश भाषा के विद्वान थे। इनकी चार रचनायें उपलब्ध हैं-(१) हरिवंश पुराण (२) धर्म परीक्षा (३) परमेष्ठि प्रकाश सार एवं (४) योगसार ।
(१७) कवि धनपाल–ये मूलतः ब्राह्मण थे । लघुभ्राता से जैनधर्म में दीक्षित हुए । वाक्पतिराज मुन्ज की विद्वत् सभा के रत्न थे । मुन्ज द्वारा इन्हें 'सरस्वती' की उपाधि दी गई थी। संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं पर इनका समान अधिकार था। इनका समय ११वीं सदी निश्चित है। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं-१. पाइयलच्छी नाम माला-प्राकृत कोश २. तिलक मंजरी-संस्कृत गद्य काव्य, ३. अपने छोटे भाई शोभन मुनिकृत स्तोत्र ग्रन्थ पर एक संस्कृत टीका ४. ऋषभ पंचाशिका-प्राकृत ५. महावीर स्तुति ६. सत्य पुरीय ७. महावीर उत्साह-अपभ्रंश और ८. वीरथुई ।।
(१८) मेरुतुगाचार्य-इन्होंने अपना प्रसिद्ध ऐतिहासिक सामग्री से परिपूर्ण ग्रन्थ 'प्रबन्ध चिंतामणि' वि० सं० १३६१ में लिखा। इसमें पांच सर्ग हैं । इसके अतिरिक्त विचार श्रेणी, स्थविरावली और महापुरुष चरित या उपदेश शती-जिसमें ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्धमान तीर्थंकरों के विषय में जानकारी है, की रचना की।
(१९) तारणस्वामी-ये तारण पंथ के प्रवर्तक आचार्य थे । इनका जन्म पुहुपावती नगरी में सन् १४४८ में हुआ था। आपकी शिक्षा श्रुतसागर मुनि के पास हुई । इन्होंने कुल १४ ग्रन्थों की रचना की जिनके नाम इस प्रकार हैं-१. श्रावकाचार, २. माला जी, ३. पंडित पूजा, ४. कमलबत्तीसी, ५. न्याय समुच्चयसार, ६. उपदेशशुद्धसार, ७. त्रिभंगीसार, ८. चौबीसठाना, ६. ममलपाहु, १०. सुन्न स्वभाव, ११. सिद्ध स्वभाव, १२. खात का विशेष, १३. छद्मस्थवाणी और १४. नाम माला ।2
(२०) धर्मकीति-इन्होंने पद्मपुराण की रचना सरोजपुरी (मालवा) में की थी। भट्टारक ललितकीर्ति इनके गुरु थे। इन्होंने अपने उक्त ग्रन्थ को सम्वत् १६६९ में समाप्त किया था। सम्वत् १६७० की प्रति में लिपिकार ने इनको भट्टारक नाम से सम्बोधित किया है । इससे यह ज्ञात होता है कि पद्मपुराण की रचना के बाद ये भट्टारक बने थे। इनकी दूसरी रचना का नाम हरिवंश पुराण है। हरिवंश पुराण को आश्विन महीने की कृष्णा पंचमी सं० १६७१ रविवार के दिन पूर्ण किया था।'
. विस्तार भय से अपनी लेखनी को विराम देते हुए जिज्ञासु विद्वानों से अनुरोध है कि इस विषय पर विशेष शोध कर लप्त साहित्य को प्रकाश में लाने का प्रयास करें। यहां तो केवल गिनती के जैन संतों के नामों और उनके ग्रन्थों को गिनाया गया है। यदि इस विषय पर गहराई से अध्ययन किया जाये तो एक अच्छा शोध प्रबन्ध तैयार हो सकता है।
..........
1. जैन साहित्य और इतिहास, प्रेमी पृ० 468-69 2. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-4, पृ. 243 से 245, डा० नेमीचन्द शास्त्री। 3. प्रशस्ति सग्रह-डा० करतूरचन्द कासलीवाल, पृ० 9 4. जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, भाग-2, पृ० 541.42
प्राचीन मालवा के जैन सन्त और उनकी रचनाएँ : डॉ० तेजसिंह गौड़ | १४५
..liaalnilaal