Book Title: Sadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Author(s): Dineshmuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 691
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ १भेद-पंच परमेष्ठी का लौकिक ध्यान । २भेद---शूभ-अशुभ, प्रशस्त-अप्रशस्त, सुध्यान-ध्यान, ध्यान-अपध्यान, द्रव्य-भाव, स्थूल-सूक्ष्म, मुख्य-उपचार, निश्चय-व्यवहार, स्वरूपालम्बन-परालम्बन आदि । ३ भेद-परिणाम, विचार और अध्यवसायानुसार ध्यान के भेद किये हैं-वाचिक, कायिक और मानसिक; तीव्र, मृदु और मध्य; जघन्य, मध्यम और उत्तम । ४ भेद --ध्येयानुसार पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत एवं अन्य दृष्टि से नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। १० भेद—कतिपय ग्रन्थों में निम्नलिखित दस भेद मिलते हैं(१) अपाय विचय, (२) उपाय विचय, (३) जीव विचय, (४) अजीव विजय, (५) विपाक विचय, (६) विराग विचय, (७) भव विचय, (८) संस्थान विचय, (8) आज्ञा विचय और (१०) हेतु विचय। ८० भेद-(१) स्थान, (२) वर्ण (उच्चारण), (३) अर्थ, (४) आलम्बन और (५) अनालम्बन इन पाँच भेदों का, (१) इच्छा, (२) प्रवृत्ति, (३) स्थिरता और (४) सिद्धि-इन चार से गुणा करने पर २० भेद होते हैं। २० भेदों का (१) अनुकम्पा, (२) निर्वेद, (३) संवेग और (४) प्रशम इन चार इच्छानुयोगों से गुणाकार करने से धर्मध्यान के ८० भेद होते हैं । (५ ४ ४ ४ ४ =८०) ४४२३६८ भेद--मुख्यतः ध्यान के २४ भेद किये गये हैं। जैसे(१) ध्यान, (२) परमध्यान, (३) शून्य, (४) परमशून्य, (५) कला, (६) परमकला, (७) ज्योति, (८) परमज्योति, (8) विन्दु, (१०) परमबिन्दु, (११) नाद, (१२) परमनाद, (१३) तारा, (१४) परमतारा; (१५) लय, (१६) परमलय, (१७) लव, (१८) परमलव, (१६) मात्रा, (२०) परममात्रा, (२१) पद, (२२) परमपद, (२३) सिद्धि, (२४) परमसिद्धि। भवनयोग (सहजयोग-सहजक्रिया-मरुदेवीमाता) के ६६ भेद करणयोग (सहज क्रिया से विपरोत) के भी ९६ भेद और करण के १६ भेद, करण के १६ भेदों का ध्यान, परमध्यान' आदि २४ भेदों का गुणाकार करने से-६६x२४ -- २३०४ भेद होते हैं। :::: : :: ::::: : ::: : स ३५२ । सातवां खण्ड : भारतीय संस्कृति में योग . . . .... .... www.jaineliors

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