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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
और उसके १८ अनुवाकों की, १७६ सूक्तों की तथा २ मन्त्रों की व्याख्यायें की हैं । अत्रि ऋषि की विदुषी पत्नी अनसूया, और वशिष्ठ - पत्नी अरुन्धती की विद्वत्ता की धाक दूर-दूर तक थी । प्रातः स्मरण में पंचकन्याओं का स्मरण भी महान पातकों को नाश करने वाला माना गया है । यथा :
अहल्या, द्रौपदी, तारा, कुन्ती, मन्दोदरी तथा । पंचकन्या स्मरेत् नित्यम्, महापातक नाशिनीम् ॥
नारियों ने इतिहास में अवसर आने पर राजदण्ड भी संभाला है और असिदण्ड भी । अनतिदूर इतिहास में, गोंडवाने की महारानी दुर्गावती तथा गोलकुण्डा की मलिका चाँदबीबी के पराक्रम की कहानियों से मध्यकालीन इतिहास अनुगुंजित है। दिल्ली के राजसिंहासन पर दृढ़ता एवम् योग्यता से राज करने वाली रजिया सुलताना का वृत्तान्त बहुत प्रेरणाप्रद है । इन्दौर की रानी अहिल्याबाई को मध्य भारत की प्रजा, आज भी देवी-रूप में मानती है ।
ब्रिटिश साम्राज्य को भारत में जड़ें न जमाने दिया जाये इसके लिए बंगाल की वीरांगना 'देवी चौधुरानी' ने जलदस्युओं की जलपोत सेना संगठित करके, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कितने ही धनधान्य से भरे जहाजों को लूट लिया था और वह सभी बुभुक्षित प्रजाजनों में बाँट दिया था। भारत के स्वाधीनतासंग्राम में नारी की भूमिका इतनी महान एवं प्रेरणादायिनी रही है कि उसकी प्रशस्तियों के रूप में देश भर में लोककथाओं एवम् लोकगीतों को गाँवों-गाँवों और घरों घरों में कहा-सुना और गाया जाता है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की वेगम हजरत महल, कित्तूर की रानी चिनम्मा ने, सन् १८५७ ई० के महान प्रथम भारतीय महासंग्राम को नेतृत्व प्रदान किया था । हमारी बीसवीं सदी ईस्वी में, सफलता पूर्वक लड़े गये, भारत के द्वितीय विमुक्ति महासंग्राम में, कई हजार महिलाओं ने ब्रिटिश कारागारों की यातनाएँ सही थीं । सशस्त्र क्रांतिकारी आन्दोलन में भी अनेक वीरांगनाएँ, अंग्रेजी सेनाओं की गोलियों से शहीद हुई थीं । वास्तविकता तो यह है कि यदि भारतीय महिलाएँ हमारी आजादी की दूसरी लड़ाई में नेतृत्व न संभालती तो हम असूर्य अस्ता ब्रिटिश साम्राज्य को भारत भूमि से निष्कासित करने में कदापि सफल न हुए होते ।
भारत की स्वाधीनता - प्राप्ति के पश्चात् के विगत चार दशकों के इतिहास का सबसे गौरवशाली अध्याय है, वह कालखण्ड जिसे 'इन्दिरा-युग' कह सकते हैं। अपने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के राजनेता पिता पं० जवाहरलाल जी के स्वर्गवास के पश्चात् तथा उन्हीं के विश्वस्त कर्मनिष्ठ उत्तराधिकारी श्री लालबहादुर शास्त्री के अचानक स्वर्गवास के पश्चात्, जब देश, पर्याप्त, बड़े और गहरे राजनैतिक संकट में था, तभी श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने स्वाधीन भारत की सर्वप्रथम महिलामन्त्री का पद, सन् १९६६ में सँभाला । उन्होंने भारतीय नारी की गरिमा को विश्व मान्य स्तर पर पहुँचा दिया। उनका शासनकाल सन् १९६८, ब्रिटिश शासनोत्तर स्वाधीन भारत के इतिहास में सदैव 'स्वर्णकाल' कहलाएगा। जिस समय श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने इस देश की सर्वोच्च शासिका का भार ग्रहण किया था, तब भारतीय की राजनैतिक, आर्थिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ पर्याप्त शोचनीय थीं । किन्तु अपने सोलह वर्षों के सुशासन के द्वारा उन्होंने भारतीय राष्ट्र को प्रगति एवम् अभ्युदय के पथ पर इतनी तीव्रता से अग्रसर
राष्ट्र
मानवीय विकास में नारी का स्थान, महत्व और मूल्यांकन : डॉ० इन्दिरा जोशी | २८५