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साधना पथ . पूज्यश्री:- याद चाहे आए पर जीव उनमें इष्ट-अनिष्ट परिणति करें तो क्लेश हो। यदि इष्ट-अनिष्ट परिणति न करें और विचार करें कि मुझे तो छुटना है और मोक्ष में जाना है, तो कलेश नहीं होगा। समभाव आने के बाद ही मोक्ष में जा सकते हैं। क्योंकि समभाव ही आत्मा का निज घर है। इष्ट-अनिष्ट करने से पार नहीं आता। जो याद आएँ, उसमें रुचि न ले, समझ से उसका विचार करके सम परिणति जीव रख सकता है। याद आता है, उसमें जीव को यदि मीठास लगेगी तभी उसकी परिणति बिगड़ती है, अन्यथा नहीं बिगड़ती। याद आने मात्र से यदि परिणति बिगड़ती हो तो मोक्ष हो ही नहीं, क्योंकि पूर्व कर्म है, तब तक याद तो आएगी ही। अतः मार्ग को बदलने की जरूरत है। एक पटरी से दूसरी पटरी गाड़ी बदलें तो मुम्बई न जाकर अहमदाबाद तरफ जाने लगेगें। वैसे ही रुचि बदले तो संसार से हटकर मोक्ष प्रति मुड़ते है। रुचि बदले तो सर्व पुरुषार्थ यथार्थ हो जाएँ। रुचि न बदले तो सर्व क्रिया, तप, जप आदि संसार के कारणभूत बन जाते हैं।
- चमरेन्द्र पूर्व भव में सुखी श्रेष्ठी था। उसे विचार आया कि पूर्व में मैंने कुछ किया है। उसी के फल से मैं यहाँ सुखी हूँ और अब जो प्रमाद में रहूँगा तो मौत आ जाएगी। अतः सुबह उठकर दीक्षा ग्रहण कर, धर्म आराधन करुंगा। ऐसा सोचकर सुबह होते ही उसने प्रणामा नामक तापसी दीक्षा अंगीकार की। कई वर्ष तक कठिन तप करके भी रुचि बदली नहीं। अन्त में एक मासका अनशन कर के भवनपति देवलोक में चमरेन्द्र बना। वहाँ पर ऊँचे सौधर्म ईन्द्र का विमान अवधि ज्ञान से देखकर उसे क्रोध आया। उसे हराने के लिए उससे युद्ध करने गया, सौधर्म ईन्द्र ने वज्र छोड़ा उसके भय से भगवान महावीर काउसग्ग में थे, वहाँ आकर उनके चरणों में मच्छर बनकर बैठ गया। इस तरह अपना बचाव किया। भगवान को वंदन कर के पश्चात्ताप से बिनंती की कि हे प्रभो ! मैंने पूर्व भव में : अज्ञान तप किया तो यहाँ देव बनना पड़ा। यदि प्रथम आप के ही चरणों में दीक्षा ली होती तो इस तरह ईर्ष्या भी न होती और मोक्ष भी हो जाता।