Book Title: Sadhna Path
Author(s): Prakash D Shah, Harshpriyashreeji
Publisher: Shrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap

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Page 206
________________ साधना पथ (१९३ 'एक को जाने वह सर्व को जाने और सर्व को जानने का फल एक को जानना है ।' जीव में योग्यता चाहिए तो अगम्य वस्तु भी है | सद्गुरु के अभाव में योग्यता प्राप्त करनी हो तो कर सकते हैं। सद्गुरु मिलें तो झट काम हो जाए। सुगम्य हो फिर ८. विषय विकार सहित जे, रह्या मति ना योग; परिणामनी विषमता, तेने योग अयोग। सद्गुरु का योग मिलें पर पाँच इन्द्रियों के विषय में विचार रहे, उनकी चाहना रहे विषय अच्छे लगें, परिणाम विषयी रहें तो धर्म करते हुए अधर्म हो और योग हुआ हो तो वह निष्फल जाएँ । अतः सर्वप्रथम इन्द्रियों के विषयों में वैराग्य करना है। ये विषय अनादि के शत्रु हैं। स्वरूप भुलाने वाले हैं। इन में ही रहे तो कल्याण न हो। इन विषयों के कारण विषमभाव होता है। सारे जैन धर्म का आधार परिणाम पर है। पाँचों विषयों में रागद्वेष न होने की योग्यता जिसमें नहीं, उसे योग मिला हो, तो भी अयोग है। अतः विषय जीतो । ९. मंद विषय ने सरळता, सह आज्ञा सुविचार करुणा कोमळतादि गुण प्रथम भूमिका धार । जिसने पाँच इन्द्रियों के विषयों को मंद किया हो; कपट, दम्भ करने की इच्छा न करता हो, जैसा हो वैसा प्रगट करता हो, बगुले की तरह देखाव न करता हो, ऐसे सरल जीव को गुण ग्रहण करने की इच्छा होती है। जिसे गुण दिखाने की इच्छा होती है, उसे गुण ग्रहण करने की इच्छा नहीं होती। जो गुण ग्रहण की इच्छा रखता है, सरलता रखता है, ज्ञानी की आज्ञा अनुसार चलता है। आत्मविचार करता है। दिल में दया- करुणाभाव हो उसे अपनी आत्मा की दया आती है कि अनादि काल से भटक रहा है, अब उसे मोक्ष में ले जाऊँ । आत्मा का अन्य कोई कर देने वाला नहीं । कोमलता अर्थात् मान का अभाव, 'मैं बड़ा हूँ' ऐसा मान न हो, ज्ञानी के बचन ह्रदय में द्रढ़ हो जाएँ। 'वाल्यो वळे जेम हेम ।' उसे ज्ञानी के वचन हृदय में द्रढ़ हो जाते हैं। मान हो उसे कुछ नहीं होता । यह योग की प्रथम भूमिका है।

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