Book Title: Sadhna Path
Author(s): Prakash D Shah, Harshpriyashreeji
Publisher: Shrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap

View full book text
Previous | Next

Page 214
________________ साधना पथ २०१७ हो तो अहंकार मिटे। ज्ञान के साथ वैराग्य रहे तो वह सच्चा ज्ञान है। ऐसा सच्चा ज्ञान संसार में भी रह सकता है।राम को इतना अधिक वैराग्य था कि संसार से एकदम उदासीनता हो गई थी। इसलिए कहा कि मुझे शान्ति हो, ऐसा कुछ बताओ। तब तक खाना नहीं, पीना नहीं, श्वास भी नहीं लेना। तब वसिष्ठ ऋषिने उपदेश देकर शान्त किया। फिर राम ने राजपाट सर्वस्व देना चालू कर दिया, पर गुरुने कहा अज्ञान छोड़ो। 'सर्व क्लेश से सर्व दुःख से मुक्त होने का उपाय एक आत्मज्ञान है।' (श्री.रा.प.५६९) ज्ञानी गृहस्थावास में हो तब तक मार्ग बताते हैं पर उपदेश नहीं देते। ज्ञानियों का अन्तर तो बहुत विशाल है। उसका विचार करने से सम्यक्त्व हो सकता है। ज्ञानी अंतर में निग्रंथ हैं, विरति है, इसलिए गृहस्थावस्था में भी निग्रंथ है। तीर्थंकर भी गृहस्थावस्था में मार्ग नहीं चलाते। ज्ञानी पुरुष अर्थात् जिन्हें आत्मज्ञान हो गया है वे उपाधि में भी समाधि में रहते हैं। अंतर में उन्हे विरति होने पर भी राजमार्ग का उल्लंघन नहीं करते। त्याग करके त्याग कराएँ तो उचित है, यह राजमार्ग है। इससे किसी को शंका नहीं होती। ज्ञानी को शिष्य नहीं बनाना हैं। इसकी निःस्पृहता की छाप पड़ती है। गृहस्थावस्था में ज्ञानी धर्म की बात न करें, ऐसा नहीं, कभी करे भी। योग्य जीव को ज्ञानी योग्य बोध देते हैं। वासित बोध अर्थात् मोह वाला बोध संसारी को अच्छा लगता है। मोही जीव साधु बनने के बाद भी, मैं बनिया हूँ, यह हूँ, आदि जाना मुश्किल है। गोचरी जाएँ तब अमुक के घर जाऊँ तो अच्छा, यों रहता है। आत्मा बनिया नहीं, ब्राह्मण नहीं, स्त्री नहीं, पुरुष नहीं; आत्मा आत्मा ही है। मैं देह नहीं, ऐसा होने पर देह के सब संस्कार छूट जाते हैं। सब देह के आधार पर है। मैं देह हूँ यह भाव रहे तब तक मैं जवान हूँ, मैं बुढ़ा हूँ इस तरह रहता है। कर्म को शर्म नहीं। कर्म किसी को नहीं छोड़ते। सब को भोगने ही पड़ते हैं। मिथ्यात्व होने तक जीव पाँच इन्द्रियों के विषय में पड़ा है। अच्छा खाना, पीना, सूंघना, सुनना, चखना है; इस तरह राग-द्वेष करके पाप

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228