Book Title: Sadhna Path
Author(s): Prakash D Shah, Harshpriyashreeji
Publisher: Shrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap

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Page 217
________________ (२०४ साधना पथ ज्ञानी तो समझाएँ पर जीव न बदले तो ज्ञानी क्या करें? मिथ्यादृष्टि जीव दीक्षा लेता है, तप करता है, सब पुण्य के लिए करता है। अभविको छूटने की मान्यता भी नहीं होती। एक शब्द परिणाम पाए तो बहुत है। एक मंत्र परिणमे तो बहुत है। ____मेरु आदि की बातों में जीव जाता है। किस लिए वर्णन है? वह पता नहीं। लोकसंस्थान धर्मध्यान कहा है। इसी तरह मेरु आदि को विचारे तो धर्मध्यान हो। यह सुन कर ममता न करना। धर्म की बातों में वृत्ति रहे तो कल्याण हो। जगत का स्वरूप जान कर वैराग्य हो और ममता छोड़े तो मुक्ति हो। कृपालुदेव कहते थे कि हमारा उपदेश तो जिसे सुन कर कुछ करना हो उस के लिए है। जिस लक्षण से आत्मा पहचानी जाती है, ज्ञानादि तो आत्मा का धर्म है, उसका तो जीव विचार नहीं करता। आत्मा की संभाल लेनी है। सब परिग्रह जीव इकठ्ठा करता है, वह साथ में नहीं आनेवाला। अतः आत्मा के साथ आएँ ऐसा कुछ करके जागृत होना है। जीव और कर्म का अनादि का संग है वह कुसंग है। कुसंग छोड़ना है। वह सत्संग विना न छूटे। - ज्ञानी कहते हैं कि जीव मूर्ख है, पर जीव स्वयं को बुद्धिशाली मानता है। स्वयं को मूर्ख माने तो ज्ञानी का कहा करें। जीव रजाई ओढ़कर सोया हो तो लाठी मारो तो आवाज आएँ, पर इसे कुछ लगता नहीं, इससे उल्टा वह खुशी होता है। जो पतली चादर ओढ़कर सोया हो उसे चोट लगती है, इससे फटाक् से खड़ा हो जाता है। उसी तरह जीव को अपने दोष दिखते नहीं। ज्ञानी स्पष्ट कर के दिखाते हैं, तो भी जीव मानता नहीं। माने तो काम हो जाएँ। मनुष्यभव की पूंजी का सदुपयोग नहीं। व्यापार करना जानता नहीं। इसे पता नहीं लगता, पर सत्संग में इसका काम हो जाता है। जीव ने जड़ और चेतन सब एक कर डाला है। जगत के काम में जैसे सावधानी रखता है, वैसे धर्म के काम में भी रखनी चाहिए। सर्व भाव

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