Book Title: Sadhna Path
Author(s): Prakash D Shah, Harshpriyashreeji
Publisher: Shrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ १९८ साधना पथ वस्तुओं में कल्पना करके जीव ने सुख माना है, पर सुख तो आत्मा में है। दूसरी कोई वस्तु सुख नहीं दे सकती। पाँचों इन्द्रियाँ वश करना हो तो पहले जीभ को वश करो। इसे जीतने का ज्ञानी पुरुष पुरुषार्थ करते हैं। जो जो अच्छा लगता हो, उसका त्याग करे तो हों। कई लोग इस तरह नियम करते हैं कि आज मुझे मिठाई नहीं खाना। दूसरे दिन घी नहीं खाना। तीसरे दिन मिर्च नहीं खाना। इस तरह सब कसरत करते हैं। इन्द्रियाँ वश न की हों तो जीव को नरक में ले जाने वाली हैं। इन्हें वश करें तो मोक्ष हो। मन जीतने का उपाय, इन्द्रिय विजय है। इन्द्रियों को बलवान बनाने वाला पौष्टिक आहार है। वह खुराक कम मिले तो इन्द्रियाँ ढ़ीली पड़ें। ज्ञानी का बताया उपाय करने से इन्द्रियाँ वश में हो जाती हैं। प्रश्न:- तुच्छ आहार क्या होता है? पूज्यश्रीः- जिससे सब इन्द्रियाँ वश हो। साधर्मी वात्सल्य में खाने गएँ तो दाल-चावल खा कर उठ जाओ। मन माँगे, वह उसे नहीं देना। एक जीभ जीती जाएँ तो सब इन्द्रियाँ जीती जाएँ। जीभ सब को पोषण देती है। इसे जीतने का पुरुषार्थ करना। उपवास करते समय लक्ष्य रखो कि किस लिए उपवास करना? इन्द्रियों को वश में करने का लक्ष्य रखना चाहिए। वह नहीं रहता। अपनी कोई प्रशंसा करे तो खुश नहीं होना। लौकिक भाव से आत्म कल्याण नहीं होता। अपने दोष देख कर निकालना हैं। अहँकार रहित होने के लिए सब शास्त्र कहे हैं। देह की इच्छा से जीव सुख चाहता है, तो कैसा सुख मिलेगा? आगे क्या होगा? मुमुक्षुः- तो क्या देह को दुःखी करना? पूज्यश्रीः- यह तपस्वी को पूछो। मौत सिर पर है, अतः सावधान रहना है। निगोद में भी जीव कितनी ही बार हो आया है। यह देख कर ज्ञानी को दया आती हैं। निःस्पृह पुरुष हो वह कड़वी दवा देता है। अन्य तो बड़ी बड़ी बातें ही करते हैं। सत्य ज्यादा असर करता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228