Book Title: Sadhna Path
Author(s): Prakash D Shah, Harshpriyashreeji
Publisher: Shrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap

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Page 181
________________ १६८ साधना पथ मुझे इनसे छूटना है आत्मा का ही हित करना है। जिसे छूटना है, उसे कोई बाँध नहीं सकता। जहाँ दीपक में बत्ती हो वहाँ दीपक जगे, वैसे ही ज्ञानी का योग हों तो ज्ञान होता है । सत्पुरुष का योग होने के बाद अपूर्वता लगे तो सच्चा रंग चढ़े। सब बदल जाएँ । सत्पुरुष के योग से आत्मज्ञान होना सुलभ है, किंतु प्रेम आना चाहिए। जीव के पास प्रेम की यथार्थ पूंजी है। यह पूंजी इन्द्रियों के विषय में बाँट दी हैं । अतः सच्ची कमाई नहीं होती । सत्पुरुष में खर्चे तो सच्ची कमाई हो । “पर प्रेम प्रवाह बढ़े प्रभु से" ज्ञानी तो पुकार पुकार कर कहते हैं कि हे जीव ! तु मोहनिद्रा से जाग। जब तक सत्पुरुष के प्रति, उनके वचनों के प्रति तथा उन वचनों के आशय के प्रति प्रेम न आएँ तब तक आत्म विचार का उदय न हो। अनादि काल से जीव की बाह्य वृत्ति है। अरूपी आत्मा तरफ मुड़नी मुश्किल है। अपने पास ही आत्मा है, उसकी पहचान करनी है। जीव को सत्पुरुष पर विश्वास आएँ तो हो सके। सत्पुरुष के प्रति जीव को जब प्रेम आएँ तब लगता है कि इतने समय तक सब साधन वृथा किएँ । अतः अब लक्ष्य रख कर आत्मा का काम करना है। विश्वास आने पर सब सरल है। जब तक पर वस्तुओ में प्रेम हैं, तब तक सच्ची वस्तु पर विश्वास नहीं आता । विश्वास आत्मा का करना है । छः पद का विश्वास दृढ़ करना है। आत्मा है, आत्मा नित्य है, कर्त्ता है, भोक्ता है, मोक्ष है, मोक्ष का उपाय है। इसकी श्रद्धा करने के लिए पुरुषार्थ करेगा तो विश्वास आएगा। जब तक संसार का लक्ष्य है, तब तक संसार है। ज्ञानी के योग से, ज्ञानी की आज्ञानुसार आचरण करें तो इसे ज्ञानी की अपूर्वता लगे। ऐसा योग दो-बारा मिलना मुश्किल है। जितना करोगे, उतना मनुष्यभव सफल होगा। इस भव तक तो कर लेना । देह से मैं भिन्न हूँ, यह लक्ष्य रखना । उसमें मोह का लश्कर लूँट न ले, इसकी सावधानी रखना। कल्याण होने में जीव को बाधक वस्तुएँ कौन सी है ? १. अभिमान:- अहंकार से साधन निष्फल हो जाएँगें । न जानते हुए भी, जानने का जीव अभिमान करता है । २. लोक भयः- मैं धर्म करता हूँ परन्तु

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