Book Title: Sadhna Path
Author(s): Prakash D Shah, Harshpriyashreeji
Publisher: Shrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ १७८ साधना पथ को धर्म याद आता है, अन्यथा ऐसे प्रसंग में धर्म भूल जाता है। मृत्यु का । डर लगे तो अधर्म के रास्ते जीव चले नहीं, अन्यथा साधु बन कर भी माँग कर खाता हो तो भी कजिया-क्लेश किए बिना नहीं रहता। "उदर भरणादि निज काज करता थका, मोह नड़िया कलिकाल राजे।" किसी के मरण प्रंसग पर, आत्मा का कल्याण हो, ऐसा निश्चय करना। कोई वृद्धावस्था में, कोई युवावय में, कोई बालवय में, कोई पाँच वर्ष में, कोई पच्चीस वर्ष में मर जाता है। मृत्यु निश्चित नहीं, अतः सावधान रहना। कई महापुरुष ऐसे हो गए हैं कि छोटी आयु होने पर भी आत्मा का काम कर गए हैं। तीर्थंकर जैसे तीन ज्ञान के धारक तीस वर्ष की युवावस्था में संसार छोड़ कर निकल पड़े। मनुष्यभव है तब तक आत्म कल्याण कर लेना, यह सुख का कारण है। मेरा कोई नहीं इस तरह सोचना। मृत्यु के प्रसंग में खेद को बदल कर ज्ञानी के वचनों में वृत्ति रखना। ज्ञानी के वचन का विचार करना। श्री.रा.प.-७१० (१३५) बो.भा.-२ : पृ.-३०५ ज्ञान की अपेक्षा से आत्मा सर्वव्यापी है। लोका-लोकव्यापक, शुद्धस्वरूपी, अत्यन्त निर्मल, सर्व परसंग से रहित, अबाध्य अनुभव वाली, सर्व को जानने वाली, सर्व पदार्थ और उनके स्वरूप को जानने वाली आत्मा है। आत्मा का लक्षण उपयोग है। आत्मा सुख स्वरूप है। जीव के अलावा अन्य द्रव्यों में सुख नहीं मिलता। आत्मा, इन्द्रियों से जानी नहीं जा सकती। आत्मा आँख से दिखें या कान से सुनाई दे ऐसा नहीं है। यह तो स्वसंवेदन गोचर है। आत्मा तीनों काल में रहने वाली है क्योंकि वह उत्पन्न नहीं होती, असंयोगी है अतः नित्य है। आत्मा विभाव में जाएँ तो कर्म की कर्ता कहलाएँ और स्वभाव में रहे तो स्वभाव की कर्ता कहलाएँ। जीव को अपने

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228