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साधना पथ
चलेगा। प्रारब्ध के उपर सब निर्भर है। जिसे आजीविका जितना प्राप्त हो, उसे ज्यादा लालसा रखना नहीं। शांति रहे, वैसे करना है।
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बो. भा. - १ : पृ. ४०
मनुष्यभव कितना दुर्लभ है, यह जीव जानता नहीं । महा पुण्य योग से मिले इस मानवभव को व्यर्थ न जाने दें। मनुष्य तो सभी हैं, पर अपने को तो सत्पुरुष का योग मिला है, उन की आज्ञा का पालन करना । इसमें प्रमाद न होना चाहिए। प्रमाद और आलस्य जैसा कोई शत्रु नहीं । अतः प्रमाद न हो, सावधानी रखें।
प्रश्न:- पूर्व कर्म से भी प्रमाद तो आता ही है ?
उत्तरः- आता तो है पूर्व कर्म से ही, पर पुरुषार्थ न करें तो प्रमाद नहीं जाता। पुरुषार्थ मात्र देह से नहीं, पर भावना उँची रखनी चाहिए। सत्संग सब से बलवान साधन है। स्वयं पुरुषार्थ न करे और कहे कि कर्म है, कर्म है, तो तो कोई मोक्षमें जाए नहीं । कर्म तो जड़ वस्तु है। कर्म को किसने बुलाया ? आत्माने और यदि आत्मा कहे कि मुझे नहीं चाहिए, तो कर्म आकर चिपकता नहीं । महावीर स्वामी को तेईस तीर्थंकर जितने कर्म थे । निरन्तर साढ़े बारह वर्ष पुरुषार्थ करके घनघाती कर्मों को क्षय कर ड्राला। पुरुषार्थ की आवश्यकता है। " पूर्व कर्म नहीं, ऐसा मान कर प्रत्येक धर्म का सेवन करते रहना । " ( श्री. रा. प. - ८४) जब से सत्पुरुष की आज्ञा मिली, तब से सावधान रहना ।
"कोटि वर्षनुं स्वप्न पण, जाग्रत थतां शमाय;
ते विभाव अनादिनो, ज्ञान थतां दूर थाय ।" ११४ आ.सि.
ज्ञान होने पर विभाव नहीं रहता । जगत स्वप्न जैसा है । शरीर का कोई भरोसा नहीं। कोई गर्भ में ही मर जाता है, कोई पच्चीस वर्ष का होकर मर जाता है, इसका कोई नियम नहीं । मनुष्यभव में जो इच्छा हो, वह पूरी कर सकता है । एक मनुष्यभव के अलावा कहीं से भी मोक्ष नहीं है। जो भी करना है मुझे आत्मार्थ के लिए करना है, दूसरों को अच्छा लगाने के लिए नहीं करना, यह लक्ष्य रखें।