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________________ ५० साधना पथ चलेगा। प्रारब्ध के उपर सब निर्भर है। जिसे आजीविका जितना प्राप्त हो, उसे ज्यादा लालसा रखना नहीं। शांति रहे, वैसे करना है। (४७) बो. भा. - १ : पृ. ४० मनुष्यभव कितना दुर्लभ है, यह जीव जानता नहीं । महा पुण्य योग से मिले इस मानवभव को व्यर्थ न जाने दें। मनुष्य तो सभी हैं, पर अपने को तो सत्पुरुष का योग मिला है, उन की आज्ञा का पालन करना । इसमें प्रमाद न होना चाहिए। प्रमाद और आलस्य जैसा कोई शत्रु नहीं । अतः प्रमाद न हो, सावधानी रखें। प्रश्न:- पूर्व कर्म से भी प्रमाद तो आता ही है ? उत्तरः- आता तो है पूर्व कर्म से ही, पर पुरुषार्थ न करें तो प्रमाद नहीं जाता। पुरुषार्थ मात्र देह से नहीं, पर भावना उँची रखनी चाहिए। सत्संग सब से बलवान साधन है। स्वयं पुरुषार्थ न करे और कहे कि कर्म है, कर्म है, तो तो कोई मोक्षमें जाए नहीं । कर्म तो जड़ वस्तु है। कर्म को किसने बुलाया ? आत्माने और यदि आत्मा कहे कि मुझे नहीं चाहिए, तो कर्म आकर चिपकता नहीं । महावीर स्वामी को तेईस तीर्थंकर जितने कर्म थे । निरन्तर साढ़े बारह वर्ष पुरुषार्थ करके घनघाती कर्मों को क्षय कर ड्राला। पुरुषार्थ की आवश्यकता है। " पूर्व कर्म नहीं, ऐसा मान कर प्रत्येक धर्म का सेवन करते रहना । " ( श्री. रा. प. - ८४) जब से सत्पुरुष की आज्ञा मिली, तब से सावधान रहना । "कोटि वर्षनुं स्वप्न पण, जाग्रत थतां शमाय; ते विभाव अनादिनो, ज्ञान थतां दूर थाय ।" ११४ आ.सि. ज्ञान होने पर विभाव नहीं रहता । जगत स्वप्न जैसा है । शरीर का कोई भरोसा नहीं। कोई गर्भ में ही मर जाता है, कोई पच्चीस वर्ष का होकर मर जाता है, इसका कोई नियम नहीं । मनुष्यभव में जो इच्छा हो, वह पूरी कर सकता है । एक मनुष्यभव के अलावा कहीं से भी मोक्ष नहीं है। जो भी करना है मुझे आत्मार्थ के लिए करना है, दूसरों को अच्छा लगाने के लिए नहीं करना, यह लक्ष्य रखें।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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