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साधना पथ
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पूर्व कर्म है, ज्ञानियों ने यह क्यों कहा? जागृत करने के लिए। मनुष्य भव की एक पल भी मिलना मुश्किल है। एक पल में सम्यग्दर्शन होता है, एक पल में केवलज्ञान हो जाता है।
कृपालुदेवने कहा है कि मुझे सारे जगत का शिष्य होने दो। महापुरुषों की भावना ही कोई अलौकिक होती है। यदि स्व- आत्मा का हित करना हो, तो दूसरों के हित की ईच्छा रखना । यदि अन्य का भला चाहे तो अपना स्वयमेव हो जाएगा।
बो. भा. - १ : पृ. १२८
(४८) सुबह साढ़े तीन बजे उठना और पुनरावर्तन करना, याद करना । रोज सोते समय देखना कि मैं क्या करने आया था और क्या कर रहा हूँ ? इससे दोष हो तो पता लगता है कि मैं कहाँ खड़ा था ? कहाँ बातें की थी ? यह काम न किया होता तो न चलता ? ऐसे विचार करना । ऐसा करने से दूसरे दिन दोष न होगा। सोते समय रोज हिसाब करना, जैसे व्यापार में करते हो।
(४९)
बो. भा. - १ : पृ. १३०
प्रश्न :- कोई अयोग्य कार्य करते प्रथम विचार नहीं आता, बादमें आता है इसका क्या कारण ?
पूज्यश्री :- इतनी विचार की कमी है। कुछ लोगों को तो अयोग्य कार्य करते प्रथम विचार भी नहीं आता और पीछे से भी पश्चात्ताप नहीं होता। कईयों को कार्य करते विचार नहीं आता, बाद में पश्चात्ताप होता है। कईयों को पहले विचार आता है कि यह मेरे लिए अयोग्य है, तथापि पराधीनता के कारण करना पड़ता है, फिर पश्चाताप करता है। जीव भवभीरु हो तो उसे कषाय भाव होने लगे तब यह अच्छा है. ऐसा नहीं होता। यह कार्य उचित नहीं तथापि ऐसा क्यों हुआ ? इस तरह विचार आता है। फिर सोचता है कि किसी का दोष नहीं, मेरे कर्म का दोष है। जिस से वाद-विवाद या झगड़ा होता नहीं ।