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साधना पथ "दीठा नहीं निज दोष तो, तरीए कोण उपाय।"
अपने दोष देखे बिना मोक्ष नहीं होता। पुरुषार्थ से जय होती है; पुरुषार्थ से सब होता है। विचारवान को कुविचार आएँ तो उन्हें निकालने का प्रयत्न करता है; पुनः ऐसा विचार न करूं, इस रास्ते न जाऊं; ऐसा निश्चय करता है। दोष जाने का उपाय महापुरुषों से जानकर उसकी आराधना करना। ज्ञानी पुरुषों ने दोष जानकर उसका अभाव किया है, उपाय खोज लिया है। जब तक जगत के दोष देखने जाता है, तब तक अपने दोष कम नहीं होते। अयोग्य जीव हो, उसे ज्ञानी पुरुष बोध नहीं देते, मौन रहते हैं। संसार दुःख रूप है, वह कैसे छूटें? यों बहुत विचार करना है। विशेष जागृति रखना। ज्ञानी पुरुष के वचनों से जानना है। ज्ञानी के वचनों से यथार्थ विचार होगा। जीव को सत्संग की बहुत जरूरत है। पुण्य का उदय हो तब तक सत्संग मिलता है। अतः प्रमाद न करें। जो जीव संसार में पड़े हैं, वे ज्ञानी के आश्रय बिना नहीं छूट सकते। जिसे सत्पुरुष का माहात्म्य लगा हो उसे ज्ञानी का कहा हुआ, सच्चा लगता है। सद्गुरु के योग से जीव का आग्रह जाता है। जीव का सम्यक्त्व नामक गुण है। उसमें विकार आने से मिथ्यात्व रूप बन गया है। जिसने मोक्ष की तैयारी ऐसी की हो कि सिर माँगे तो दे दे, वह ही सच्चा मुमुक्षु है। मुझे जगत नहीं चाहिए, ऐसा यदि हो तो ज्ञानी जो कहे वह इसे समझ में आ जाएँ। जब तक श्रद्धा नहीं, तब तक बोध समझमें नहीं आता। अहंकार, अभिमान मिटाने के लिए नमस्कार करना है। जीव को अपने दोष का खयाल नहीं। अहंकार और भ्रान्ति के कारण सच्ची वस्तु की परीक्षा नहीं होती। जब तक दोष न जाएँ, संसार नहीं छूटता।
लोकलाज, बड़प्पन यह सत्संग में विघ्न करते हैं। इससे सच्ची वस्तु हाथ नहीं आती। आग्रह से कल्याण नहीं। सब आत्मा के लिए करना है, यह भाव रहे। धर्म, शांति के लिए है। शूरवीर होने की जरूरत है। जिससे अपना हित हो, वह ही करना। ज्ञानी से सम्यक्त्व होता है। अज्ञानी से