Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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भूमिका
पाठनिर्धारण ।
'रिमिचरिउ ' अथवा 'हरिवंशपुराण' का पाठ प्रस्तुत करने में मुझे नीचे लिखी हस्तलिखित प्रतियों का उपयोग करने का अवसर प्राप्त हुआ :
पूना के भण्डारकर ओरिएंटल रिसर्च इन्स्टिट्यूट के संग्रह की प्रति स . १९७७ सन् १८९१–५५, नई संख्या ८, विवरण इस प्रकार है । नाम - हरिवंशपुराण, लेखक- स्वयंभू, लिपिकाल संवत् १५८२, पृष्ठ संख्या ५८५, प्रति पृष्ठ पर पंक्ति ११, प्रति पंक्ति में वर्ण संख्या ४० के आसपास |
पूरी प्रति एक ही लेखक द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है, लिखावट सुन्दर है, सुवाच्य है, सम्पूर्ण प्रति में अक्षरों की बनावट एकसी है । घत्ता तथा छन्दों के नाम लाल स्याही में लिखे गए हैं । सन्धि के समाप्त होने की सूचना तथा पुष्पिका लाल स्याही में लिखी गई हैं । प्रत्येक पृष्ठ के बीच में तथा उसी की सीध में दोनों ओर के हाशियों में लाल गोलाकार चिन्ह हैं । हाथ का बना मोटा कागज प्रयुक्त हुआ है । प्रति की लिखावट तथा सामान्य रूप से ऐसा लगता है कि प्रति अपेक्षाकृत नवीन है। संवत् १५८२ की नहीं प्रतीत होती, प्रति १८९१ में भांडारकर इन्स्टिटयूट में पहुँची, उससे पहले तो अवश्य ही लिखी गई है। कृति का प्रारंभ होता है, 'ॐ ऐं नमः । ॐ नमो वीतरागाय । अथ स्वयंभू मुनि कृत प्राकृत हरिवंशपुराण लिख्यते' । इस प्रति के पाठ का मिलान कुरुकाण्ड तक किया गया है । मैंने इस कृति को संज्ञा 'भ' ( Bh) दी है । मेरे उपयोग के लिये प्रति को विश्वभारती के पुस्तकालय ने भण्डारकर इन्स्टिट्यूट से मंगवाया था । प्रति कई वर्ष तक मेरे पास रही ।
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'रिठ्ठणेमिचरिउ' की दूसरी प्रति जयपुर से प्राप्त हुई । जयपुर के अनेक जैन मन्दिरों से प्राप्त हस्तलिखित प्रतियों को एक स्थान पर लाकर संग्रहीत किया गया हे यह संग्रह जयपुर के सवाई मानसिंह हाईवे पर स्थित महावीर भवन नामक संस्था में सुयवस्थित ढंग से रखा गया है । सन् १९४४ में मैं जयपुर में अप
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