Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 208
________________ १५९ एकतीसमो संधि सुहि मरइ वि भिज्जइ सरहिं देहु सपुरिसहो कवणु कलंकु एहु . धत्ता जाणिज्जइ एवहिं चारहडि तुडे सो अज्जुणु कण्णु हउं । पेक्खंतु सुरासुर गयणयले वाहि वाहि रहु संमुहउ ॥ १० [१३] एम भणेवि वे-वि पडिलग्ग सरवरेहिं । कण्णिय-तीरिय-अद्ध-ससि-भल्ल-तोमरेहिं ।। णाराय-खुरुप्प कुढारएहि अवरेहि-मि वइरि-वियारएहिं हंसेहिं व मेहासंघणेहि कंकेहिं व णहयल-लंघणेहिं तवणिज्ज-विंदु-वोगिल्लएहिं रवि-तणय-करग्गामेल्लिएहिं ४ णाराएहिं णर-कर-मुट्ठि-बंधु विहडाविउ तो-वि ण लडु रंधु तेण-वि तहो ताडिय वर-तुरंग दोहाइय स-रह महा-रहंग आवग्गिउ चिंधउ फरहरंतु णं कण्णहे। हियवउ थरहरंतु सण्णाहु लुणंत महेसु जति जहिं लोहु ण मग्गु ण तेत्थु ठंति ८ कप्परिउ कवउ किउ कण्णु केम तक्खाणे तक्खिउ रुक्खु जेम । . वच्छ-त्थले लाइय गरेण वाण कह-कह-वि जमालउ ण गय पाण पत्ता किंकरहिं थवेप्पिणु रह-सिहरे कहि-मि कण्णु ओसारियउ । वहिं गम्मइ अज्जुण थाहि रणे किवेण ताम हक्कारियउ ।। ११ [१४] । ता परियचिओ किवो पत्थ-रहवरेणं । ___ मेरु अणेय-वारओ जह दिवायरेणं ॥ अहिवायणु करेवि वलुत्तणेण आऊरिउ जलयरु अज्जुणेण अप्फालिउ करे गंडीउ रसइ णं वयणु कयंतहा तणउ हसइ पहिलारउ वारउ तुम्ह ताय हउ पच्छए इच्छए देमि घाय ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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