Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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रिट्टणेमिचरिउ
घत्ता कुरुणाहे अमरिस-कुद्धएण अज्जुणु विद् णिडालयले । णं धाउ-धराधरु पञ्झरिउ णव-पाउसे पजंत-जले ॥ १०
[१८] लुहिय णिडाल-लोहिएणं तओ णरेणं ।
झत्ति थणंतरे हओ कुरुवई परेणं ।। णरणाहु णिरुज्जउ घणु णिसण्णु तहे अवसरे अंतरे थिउ विकण्णु सु-परिट्ठिउ मत्त-महा-गइंदे ण मेहु वलग्गु महीहरिंदे परिरक्स्विउ चउहि महारहेहि संकंदण-संदण-सच्छहेहिं करि णरेण विकण्णहो तणउ विद्ध महि-मंडले णिवडिउ सर-समिद्ध कह-कह-वि कुमारु स-मंडलग्गु उप्परवि वि सई ता रहे वलग्गु तहिं अवसरे कउरव-सेण्णु भग्गु दिस-अवदिस-पह-उप्पहेहि लग्गु लइ वलहो वलही आलवइ पत्थु कहिं णासहा को रक्खेवि समत्थु ८ मई कुद्धे रणे देव वि अदेव णिल्लज्जहो भज्जहा संढ जेव
घत्ता किव-कण्ण-दोण-दुज्जोहणहो ण मुयइ जमु णासंताह । वरि एवमि एवमि समर-मुहे जसु विद्वत्त पहरंताहं ।।
अज्जुण-वयण-दुम्मिया णरवइ णियत्ता ।
वण-केसरि-किसोरहा वण-करि-व पत्ता ॥ आढत्त अखत्त पहाणएहिं . दुज्जोहण-पमुहेहिं राणएहिं किव-कण्ण-विकण्ण-जयबहेहि दोणायण-दोण-पियामहेहि ते वहु एकल्लउ सव्वसाइ गय-विदह दुक्कु मइंदु णाई
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