Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ १७० वत्थाहरण- माणिकई जिह दुहियहे हि अवरह-मि - मिलिय को ति णीय- धवहं सव्व सई भुजिज्जह सुहई धना तो कुंतिहे सिरसा पणव तें दुमय - विराड-रिद स-गंदण अक्खोहणिउ तिण्णि तहिं अवसरे दीसइ यरि समुद्दासण्णी गंधहृद्रुय-वय-मालाउल अट्ठारह-कुल- कोडि-समिद्धी तहि ते दारावइ-पट्टणे क-सरे पट्ट त्रेय ड-न Jain Education International [१३] कुंड-इंड-मायणई अणेय इं । दिई पत्थिवेण अपमेयई || णिय पडव दाखइ अणते स- तुरं गम स-गद स णंदण मेलेत्रि पट्ट महुमह - पुरवरे गोउर र- घर - पायार-रवण्णी रिट्टणेमिचरिउ * वाल- जुवाण-विद्ध-जण- स कुल सुंदर सु-कइ-कह-व्त्र पसिद्धी दुद्दम-दय- देहदलवणे दिण्णावास परिट्टिय पंडव इय रिट्टणेमिचरिए ववलासिय सय भुत्र कए बत्तीसमो परिसग्गो धत्ता धम्म- पुत्तु धम्महे फलु पत्तउ । स्वम-दम - विक्कम-य-स ंजुत्तउ ॥ ५ कुरुकंटं समत्तं ॥ For Private & Personal Use Only C { www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220