Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 218
________________ बत्तीसमो संधि १६९ घत्ता रासि जोगु लग्गु गणत्रि तहिं णवत्त-वार-अणुकूलई । पत्थे वङ-पायवेण जिह पेसियाई चउ-पासेहिं मूलई ।। ९ [११ पुत्तहा केरउ उयउ णियच्छेवि आइय कांति विउरु आउच्छेवि आउ सिहंडि दुमर घट्ट जुण णिसढु संवु आणिरुद्ध सइज्जुणु (!) सच्चइ सिणि पिहु कोंतु स-बंधउ चारु जेट्ट गउ दुदृहि उद्धउ वासुएव-वलपव-दसारह णंद-जसोय असेस-वि गो-दुह ४ अंधय-भोयय-विहि-हयायव एव पराइय सयल-वि जायव दु दहि-झल्लरि-भेरि-णिणद्दहि डमरुय-डिडिम-डवरा-सद्दिहिं दक्किय-टक्क-हुडुक्का-सद्दे हिं भंभा-पणव-तुणव-वहु-वजेहिं मद्दल-काहल-टिविला-संवहिं मागह-सूय-कहय-कइ-लक्वेहि ८ धत्ता दियवर-णड-णटावएहिं भटु-भोड्य-सामंत-सहासेहिं । अजुण-पुत्तही उत्तरहे किउ विवाहु चक्कवइ-विलासेहिं ॥ ९ [१२] कहिं पंचाल पंच कहिं पंडव कहि पिह कहिं विराडु कहिं जायव कहिं सुहद्द कहिं णरु कहि णंदणु कहि विवाहु जण-णयणाणंदणु सव्वई हांति जुहिट्टिल-पुणेहि गमियई दुक्खई कुरुवइ-कुण्णेहिं(?) विग-समई दक्खवइ पयावइ जो जं पइरइ सो तं पावइ ४ उत्तर णर-गंदण-करे लाइय कहियई कुलई जलण मेलाविय दिण्णई अण्णइं(?) वहु-सद्दई गोहण-माहिसक्क-वालद्दई मत्त हत्थि हम्मंतेहि ढक्केहि रहवर-सय सोवण्णेहिं चक्केहि ८ हय कंचण-रुप्पिय-पल्लाणेहि वेसउ सहं दतिय-जंपाणेहि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 216 217 218 219 220