Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 209
________________ रिट्ठणेमिचरिउ थिउ गउतम-गंदणु समर-कंखु अप्फालिउ धणुहरु दिण्णु संखु सहस-त्ति विसज्जिउ सर-सहासु। दस-सयहिं णिवारिउ तिण-वि तासु तंडविय तुरंगम तोमरेहिं णिय पग्गह-तोडिय-रहवरेहि रिसि-सुयहा सुहाविउ तेण थाणु तहिं अवसरे णरेणामुक्कु वाणु कह-कह-व किवहा णिय-थाणु सिद्ध पुणु अज्जुणु दसहिं सरेहिं विद्ध ते छिंदेवि वइरि-पुरजएण सर तेरह मुक्क धणंजएण ८ धत्ता सारहि तुरंग धउ कवउ धणु आयवत्त रह जज्जरिउ । उपत्ति-विपत्तिहिं जीउ जिह किउ एक्कंगें उव्वरिउ ।। ११ [१५] तो सहस-त्ति सत्त पट्टविय दयावरेणं । दसहिं सरेहि खंडिया णहयले गरेणं ॥ पट्टविय गयासणि पुण किवेण स-वि खंडिय पत्थे णिक्किवेण तहिं अवसरे धाइय कुरुव सव्व खगणाहही भूरि भुवंगम व्व पंचमुहहा मत्त महागय व अहि-मयरहो पवण-वलाहय व्व ४ ते सयल-वि एक्के अज्जुणेण आयामिय तरु जिह फग्गुणेण कासु-वि सिरु कासु-वि छिण्णु गत्तु कासु-वि धउ कासु-वि आयवत्त कासु-वि रहु कासु-वि रहवरंगु कासु-वि सारहि कासु-वि तुरंगु कासु-वि धणु कासु-वि कवउ छिण्णु कासु-वि तंवेर सरेहिं भिण्णु ८ . एक्कल्लउ पहरइ सव्वसाइ लक्खिज्जइ अज्जुण-कोडि णाई । घत्ता महि मंडिय सरेहिं स-कुडलेहिं समरंगणे एक्के एक्कु पर कित्तिए तिहुवणु मंडियउ । दुजण-वयणु ण मंडियउ ॥ १०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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