Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 207
________________ १५८ रिट्ठणेमिचरिउ [११] वेण्णि-वि दोण-णंदण विणि सावलेवा । विण्णि-वि ओवडंति केसरि-किसोर जेवा ॥ विण्णि-वि जुवाण विण्णि-वि पयंड विण्णि-वि अवलोइय-वाहु-दंड विण्णि-वि सिरि-रामालिंगियंग विण्णि-वि दाविय-वर-वइरि-भंग विण्णि-वि परिवढिय-जय-पियास । विष्णि-वि परिपूरिय-पणइ-आस विण्णि-वि रण-रस मण-पवण-वेय । विण्णि-वि पलयग्गि-खयक्क-तेय विण्णि-वि मयरहर-महा-गहीर विण्णि-वि दुद्धर धरणिधर-धीर विण्णि-वि दप्पुब्भड भड मयंध विण्णि-वि रण-भर-धुर-धरण-खंध विण्णि-वि तोसाविय सुर-णिकाय विष्णि-वि अवरोप्पर दिति घाय ८ वीमच्छे गुरु-सुय-तुरय बिद्र गंडीव-जीव तेग-वि णिसिद्ध धत्ता गुणु अवरु चडावेवि अजुणेण अयंदु सरु पेंसियउ । हउ दोणहो गंदणु तेण उरे कह-वि जमें ण गवेसियउ ।। १० [१२] तो अप्फालियं वियत्तणेण कालव्टुं ।। गिरि कंपणह लग्गु थरहरिय धराण-पढें ॥ आरोडिउ कण्णे सव्वसाइ सारंगें सीह-किसोरु णाई रे जायवि-गंदण थाहि थाहि जिव-पाण लएप्पिणु कहि-मि जाहिं वीभच्छे दोच्छिउ अंग-णाहु ज किउ महु घरिणिहे केस-गाहु ४ तहो फलु दक्खवमि कियावलेव सिरु खुडिउ विकण्णहो कमलु जेव तहिं काले तुज्झु कहिं गयड धिट्ठ पडिपाडिउ पाडिउ लहहि चेट्ट खल खुद्द पिसुण दुण्णय-णिसण्णः . पहरंतु ण लज्जहि केम कण्ण तं णिसुणेवि वाहिय-संदणेण वोल्लिज्जइ राहा-णंदणेण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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