Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 206
________________ एकतीसमो संधि १५७. अप्फालिउ धणुहरु दिण्णु संखु । जयलच्छि-वरंगण-गहण-कंखु दोण कणु दोणायण-जणेरु थिउ अग्गए णिच्चलु णाई मेरु पत्थु-वि आऊरिय देवयत्तु रण-रस-रहस-वसूसलिय-गत्तु ४ परियंचेवि रहु रहवरहो देबि आहासइ अहिवायणु करेवि गुरु पेसणु हउँ दक्खवमि सीसु तं पावमि जं रणे पत्तु भीसु लइ पढम भडारा देहि धाय पच्छइ पाहुण्णउ करमि ताय उत्थरिय वे-वि आयरिय-सीस सर दोणें पेसिय एक्कवीस ते वासव-वइरि-पुरं जएण अवहे जे छिण्ण धणंजएण घत्ता पुणु दोणें पेसिउ अज्जुणहो सर-वर-लक्खु पधाइयउ । दुज्जोहण-विढविउ अयसु जिह जले थले कहि-मि ण माइयउ ॥१० [१०] पंडु-सुओ वि सुटु वावरइ बद्ध-लक्खो । सर-लक्खेण वारिओ दोण-वाण-लक्खो ।। तच्छंति परोप्परु मग्गणेहिं सिहि-कंक-कीर-पक्खंकिएहिं गय-पत्थहिं(?) हेमालंकिरहिं आसीविस-सप्प-समप्पहेहि खय-रवि-किरणेहि-व दूसहेहि सलहेहिं व णहलय-छायणेहिं मुणिवरेहिं व भोक्ख-परायणेहिं तक्खणे जलणुक्का-दरिसणेहिं तक्खणे णव-जलहर-वरिसणेहिं तक्खणे तडि-वडणेहिं भीसणेहिं तक्खणे वज्जासणि-णीसणेहि तक्खणे दुप्पवण-पगासणेहिं तक्खणे महिहर-विण्णासणेहिं तक्खणे मयरहरारंभगेहिं तखणे मंदर-परियंभणेहिं धत्ता ओसारिउ दोणु धणंजएण कह-वि ण तेण कडतरिउ । गंडीव-धणुधर-गिरि-सिहरे गुरु-सुय-जलहरु उत्थरिउ ॥ १० ल-वलय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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