Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 204
________________ एकतीसमो संधि पत्ता सीसत्थु कवउ धउ छत्तु धणु सारहि संदणु वर तुरय । इयरट्ठ पएस धणजएण अट्ठहिं अहहिं सरहिं हय ॥ १०. तो पडिलग्ग वे-वि दिव्वेहिं पहरणेहिं । धरणि-वियारणेहिं धरणिहर-दारणेहिं ॥ वहु-माया-रूव-वियंभणेहि उच्चाडण-मोडण-थंमणेहिं उत्तासण-सोसण-गज्जणेहिं विणिभिंदण-छिंदण-भंजणेहि वित्थारण-दारण-धायणेहिं णहयल-पच्छायण-वारणेहिं भेसावण-तावण-तावसेहिं दारव-सइलेसिय-आयसेहि कर-मुक्कामुक्केहिं दारुणेहिं वइहायस-वायव-वारुणेहिं सम्भावण-भावण-भासुरेहिं पउरदर-आमर-आसुरेहि णारायण-गारुड-पण्णएहिं कउवेरेहिं कउमारिहिं गणेहिं(?) वाराह-वंभ-माहेसरहिं . सामुद्द-सउर-जोगेसरेहि घत्ता पहरंति परोप्पर वे-वि जण आएहि-मि अवरेहि-मि सरेहिं । विहिं एक्कु-वि जिज्जइ जिणइ ण-वि के-वि पसंसिय सुरवरेहिं ॥१०॥ पडिपहरणहिं लग्ग सामण्ण-सायएहि - जल-थल-गयणमंडलाहोय-छायएहिं ।। जुझंतेहिं विहि-मि समच्छरेहिं गयणंगणु छडिउ अच्छरेहि सर-सिहि-जालोलि-झुलुक्कियाइं सुर-मिहुणई कहि-मि णिलुक्कियाई पडिवारउ पत्थे वाण-जालु आमेल्लिउ पिहिउ दियंतरालु अद्ध-वहे णिवारिउ सरि-सुएण कोवंड-पयंड-महाभुएण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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