Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 205
________________ १५६ रिटणेमिचरिउ वीभच्छे पेसिय थरहर त णामेण सिलीमुह वज्जदंत ण आसीविस विसहर अणत णं दिणमणि-किरण-परिप्फुरत ते एंत णिवारिय कुद्धएण सरि-तणएं ताल-तरुद्धएण वाणेहि-मि वढ(?)-णामंकिरहिं चामीयर-पुखालंकिएहिं धत्ता गंगेयहो दुट्ठ कलत्तु जिह धणु विह डाविउ अज्जुणेण ! जं मुट्टिहे मझे ण माइयउ जाउ तेण किं णिग्गुणेण ॥ १० [८] णिट्ठविर सरासणे सरि-सुओ विरुद्धो । णं जुए गज्जिए धणे केसरी वि कुद्धो ॥ संगामे जासु देव वि अदेव धगु अवरु लयउ सु-कलत्तु जेव कोडीसरु गुणहरु सुद्ध-वंसु मग्गण-गण-संगम-दिण्ण-संसु सर-जाले छाइउ सत्वसाइ णव-जलहर-विंदे चंदु णाई ४ ण-वि दीसइ रहवरु ण-वि तुरंग ण-वि उत्तरु ण-वि धउ णउ पवंग वीभच्छे तं सर-जालु छिण्णु दस-टिसिहि विहंजेवि णाई दिण्णु गंगेयही पाडिउ आयवत्त ण ससहर-मंडलु धरणि पत्तु दोहाइउ घणु हय चक्क-रक्ख अवर-वि रह गयण-तुरय-लक्ख(?) ८ वच्छत्थले वाणेहिं दसहिं भिण्णु वामोहणु मोहण-सरेण दिण्णु घत्ता तं थवेवि पियामहु णियय-रहे . सारहि कहि-मि समोसरिउ । जिह मत्त-गइंदु महागयो भिडिउ ताम दोणायरिउ ॥ १० [९] सो सोवण्ण-संदणो कणय-कलस-इद्धो । सयल-कला-कलाव-विण्णाण-गुण-समिद्धो ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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