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एकतीसमो संधि सुहि मरइ वि भिज्जइ सरहिं देहु सपुरिसहो कवणु कलंकु एहु
. धत्ता जाणिज्जइ एवहिं चारहडि तुडे सो अज्जुणु कण्णु हउं । पेक्खंतु सुरासुर गयणयले वाहि वाहि रहु संमुहउ ॥ १०
[१३] एम भणेवि वे-वि पडिलग्ग सरवरेहिं ।
कण्णिय-तीरिय-अद्ध-ससि-भल्ल-तोमरेहिं ।। णाराय-खुरुप्प कुढारएहि अवरेहि-मि वइरि-वियारएहिं हंसेहिं व मेहासंघणेहि कंकेहिं व णहयल-लंघणेहिं तवणिज्ज-विंदु-वोगिल्लएहिं रवि-तणय-करग्गामेल्लिएहिं
४ णाराएहिं णर-कर-मुट्ठि-बंधु विहडाविउ तो-वि ण लडु रंधु तेण-वि तहो ताडिय वर-तुरंग दोहाइय स-रह महा-रहंग आवग्गिउ चिंधउ फरहरंतु णं कण्णहे। हियवउ थरहरंतु सण्णाहु लुणंत महेसु जति जहिं लोहु ण मग्गु ण तेत्थु ठंति ८ कप्परिउ कवउ किउ कण्णु केम तक्खाणे तक्खिउ रुक्खु जेम । . वच्छ-त्थले लाइय गरेण वाण कह-कह-वि जमालउ ण गय पाण
पत्ता किंकरहिं थवेप्पिणु रह-सिहरे कहि-मि कण्णु ओसारियउ । वहिं गम्मइ अज्जुण थाहि रणे किवेण ताम हक्कारियउ ।। ११
[१४]
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ता परियचिओ किवो पत्थ-रहवरेणं ।
___ मेरु अणेय-वारओ जह दिवायरेणं ॥ अहिवायणु करेवि वलुत्तणेण आऊरिउ जलयरु अज्जुणेण अप्फालिउ करे गंडीउ रसइ णं वयणु कयंतहा तणउ हसइ पहिलारउ वारउ तुम्ह ताय हउ पच्छए इच्छए देमि घाय
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