Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 196
________________ तीसमो संघि १४७ अवरोप्परु कलहु काई करहो धणु रक्खहो कुरुवइ परिगरहो पडिवक्ख-पक्ख-संखोहणिहिं पाउणहिं तिहिं अक्खोहणिहिं दुज्जोहणु अग्गए पट्ठवहो तेत्तियउ जे धणहो परिडवहो अवरेहिं पंच-अक्खोहणिहिं रह-तुरय-महागय-छोहणिहिं घत्ता सहं पत्थें जुझहो णिय-बलु वुझहो सरिसु-य वयणेहिं सव्व थिय ।। पेक्खिउ दुजोहणु लेप्पिणु गोहणु समरंगण-सामग्गि किय ॥ ९ [१३] तो आउ णिहालउ अमरयणु . रण-रसे लालसु दस-सय-णयणु सज्जिउ विमाणु त सुयरिसणु परम-जिणिंद-समोसरणु सोहम्म-सहासेहिं वित्थरिय गिव्वाण-लक्ख जहिं पइसरिय घय-चामर-छत्त-सयग्धविय विविहाउह-विविहासण-सहिय तं अमर-विमाणु पराइयउ णिविस- णहयलु छाइयउ रवि सीयलु पवणु सुगंधु किउ अइ-णिम्मलु गयणाहोउ थिउ अंधारु ण णावइ केत्तहे-वि उत्थरिउ धणंजउ एत्तहे-वि विहिं वाणेहिं गाउं परिदृविउ अहिवायणु तायहो पट्टविउ घत्ता मणि-कंचण-जडिया पाएहिं पडिया वे-वि सिलीमुह पणय-सिह । परिवुझिय दोणे अवय-तोणे अज्जुण-आसत्थाम जिह ।। ९ [१४] वे वाण अवर मण-पवण-णिह गुरु-कण्ण-णिसण्णा मंति जिह गय कह-मि कहेप्पिणु कज्ज-गइ वीभन्थु ताय पई विण्णवइ तई होते तालुय-वम्म हय वारह संवच्छर ते-वि गय हउ एवहिं गुरु-पेसणु करमि जिह पलय-महाधणु उत्थरमि ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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