Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
एकतीसमो संधि गज्जइ गंडीउ धणंजयहो वार-वार जलयरु रसइ । रहवर-रहंग-रउ दुन्विसहु णं तिहिं वयणेहिं जमु हसइ ।
अह सत्तुजए धाइए विकण्णे ।
पाराउट्टए कए कुरुवराय-सेण्णे । भज्जतउ धीरेवि धीर-चक्कु णं सीहहो मत्तु गइंदु थक्कु सिक्खवण-काले गलगज्जिएण किव-दोणायरियहु लज्जिएण अप्फालिउ कण्णे कालवठ्ठ णं कुम्म-कडाहु तड-त्ति फुटु णं मेरु महीहर-सिहरु तुटु सय-खंडु णाई गउ धरणिवटु ण पलय-समुद्दे किउ णिणाउ . ण विहिं वजहं संघटु जाउ अण्णु-वि गरुयारउ संख-सदु गउ कण्ण-विवर पूरंतु सद्दु उत्तरेण वुत्तु गंडीव-धारि हउं सहेवि ण सक्कमि रव चयारि ८ विहिं चावह विहिं कंवुय-वराहं को-वि रासि धरावहि हयवराहं
घता तो तालुय-वम्म-खयंकरेण मणु धीरिट धरणिंजयहो । हउ जसु सहाउ गंडीव-धरु को अवगासु तासु भयहो । १०
___ (२) अज्जुण-ज पियासासिओ कुमारो ।
तेण खणेण वाहिओ रहवरो णिरालो ॥ ते कालवट्ठ-गडीव-हत्थ
ओत्थरिय दिवायर-तणय-पत्थ णिय णिय रह वाहेवि संख देवि सुय कुंतिहे पढम-चउत्थ वे-वि
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220