Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 199
________________ १५० विधति कणय - पुंखेहिं सरेहिं तो आयामेपिणु दुज्जएण वीमच्छहो वइरि-विणास-कर तेण वि सो दसहि सरेहि हउ तो तालु वम्म- पुरंजण गाउ गाउ पडिवारउ उत्थरहि किं सहइ भुवंगम गरुड-झड किं करइ सो सुरयणायरहो तो ण सहिउ कण्ण-कणिट्टु मणे णउ णदिघोसु दीसइ स-धउ तेहए - वि महाहवे पंडवेण पत्थ- हुवासणु सर-जाला भीसणु अण्णाहि रहे थाएवि वाणेहि छाएवि (१९) पभणिउ राहेउ घणंजएण ओसरु विकण्ण तुहुं महु मरहि किं सीहहो ढुक्कइ हत्थि-हड जोइंगणु गयणे दिवायरहो सर-जालें छाइउ पत्थु रणे उ णावइ उत्तरु कहि-मि गउ सर-मंडउ हउ सर-मंडवेण धत्ता सिर-कमले विकण्णहो तोडियए उत्थरिउ चउद्दिसु वइरि क्लु णं विझहो घाउ मेह- उलु एक पत्थु अणेय कुरु रिट्ठणेमिचरिउ सिल- धोएहि कंक - पक्ख-घरेहिं सत्तु जण सत्तुजएण वच्छ-त्थले लाइय पंच सर स-तुरंगु स सारहि धरणि गउ धत्ता Jain Education International पुणु-त्रि लग्गु जं कुरुव-वणे | पडिवउ भिडिउ त्रिकण्णु रणे ॥ ९ तक्खणे वीमच्छे सर-परिहत्थे पच्चारेष्पिणु कुरुव- वलु । पेक्खतहो कण्णहो खुडिउ विकण्णहो सरवर -हंसेहिं सिर-कमल ||८ (२०) गिरि-मंदर - सिहरे व मोडियए णं सूरहो पासेहिं नम-पडलु आटत्तु महाहउ अतुल वलु थिउ समरे विडिव तो वि उरु For Private & Personal Use Only ४ www.jainelibrary.org

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