Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१४८
रिट्ठणेमिचरिउ. जिह सक्कहो थक्कहो आहयणे लागेसमि वण-दउ जिह गहणे तो तेण-वि सव्वहं दक्खविय सर-ओह किरीडिहिं पट्टविय तहि अवसरे चिंधउ फरहरिउ कुरुवहं हियउल्लउ थरहरिउ रहु एंतु ण दिट्ठ धणंजयहोणं पलय-कालु सव्वहो जगहो ८
घत्ता अग्गए दुजोहणु पच्छए गोहणु तासु-वि पच्छए लग्गु णरु । अत्यंतहो चंदहो तारा-विंदहोणं अणुलग्गउ दिवसयरु ॥ ९
अवगण्णेवि सयलु-वि रिउ-णिवहु गउ तेत्तहे जेत्तहे कुरुव-पहु तो भणइ एम दोणायरिउ वट्टइ दुज्जोहणु जज्जरिउ परिरक्वउ भट्ठिहिं जाउ धणु आरोडिउ अज्जुणु जमकरणु . तं णिसुणेवि पसरिउ कुरुव-दलु णं चंद-पहावें उवहि-जलु तो पूरिउ देवयत्तु णरेण ण पलए पगजिउ सायरेण अप्फालिउ करे धणुधरु रडिउ णं तडिए पडतिए तडयडिउ धरहरइ महारहु घोर-सरु तिहिं सद्देहि जाउ महंतु डरु उण्णय-णग्गलु उव्वुण्ण-मणु णिय-गत्तु धुणंतु णियंतु धणु ८
पत्ता गडीव-विहत्थे रण-उहे पत्थे सई पच्चारिउ कुरुव-वलु । दुज्जोहणु रक्खहो म उप्पेक्खहो कहिं महु एवहिं जाइ खलु ||
हक्कारिउ कण्णे ताव रणे जाणिज्जइ एवहिं चारहडि वीमत्छु वलिउ सूर गयहो ते भिडिय परोप्पर कुइय-मण 14.3 तेरह
गलगज्जहि केत्तिउ खणे जे खणे तउ उप्परि णिवडमि जेम तडि ण केसरि मत्त-महागयहो रवि-णदण-अज्जुण वे-वि जण ४
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