Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 194
________________ तीसमो संधि दुष्पवण कवण किर संति किर विरस-मुह सउह मेल्लंति सर विच्छायई जायई भड-मुहई हिम-हयइ कयई णं जलरुहई णीसुण्णई चुण्णई वाहणइं गय-भूयई हूयई साहणई असुहावहु हुयवहु मइंदलिस(?) रय-धूसर वासर णाई णिस . धत्ता पभणइ दुजोहणु सयल-विरोहणु काई दोण पई बोल्लियउ । मई कप्पिणु पत्थहो पेक्खु रहत्थहो सिरु पडंतु रुहिरोल्लियउ ॥ ९ सि ८ तुहं सयल-कालु कुरु-णि दयरु पर-वण्णणे मण्णणे कोऽवसरु को अज्जुणु को गुणु कवणु तुहं जें वार-बार णउ देहि सुहु भेसावहि दावहि कज्ज-गइ जिह वंभणु तिह भोयणु महइ तिल-चाउल गुलु घिउ सोत्तियहं कुल-मंडणु भंडणु खत्तियह कुरु-गंदणु संदणु वलेवि थिउ पई राए जाए कवणु जिउ हक्कारेवि पहरेवि आहयणे को आयहिं दायहिं विजउ जणे केसग्गहु विग्गहु विसमु किय जउ-मंडव पंडव तहि-मि थिय वणे-हिडिय पिडिय सयल-दिण ते एवहि खेविहिं विगय-रिण धत्ता सव्वहं जम-दूयह पयडीहूयह जो तं एक्कु-विं धरइ धणु । सो को-वि ण दीसइ केत्तिउ सीसइ णं तो कुरुवइ तुहं जे भणु ॥ [१०] तो सरहसु परवसु कोव-णिहि चंपावइ णावइ पलय-सिहि असुहावहु सावुहु होवि थिउ भणु भणु वंभण हउं केण जिउ खलु अज्जुणु णिग्गुणु तिण-सरिसु पर-मेरउ मेरउ सर-वरिसु कउ विसहइ ण लहइ जोक्खु ण-वि संघाणु थाणु पउ मोक्खु ण-वि 8.5 b. ज. विरसउ हसउ ह. ९ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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