Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 193
________________ १४४ रिट्ठणेमिचरित घण-घोसण-भीसण-तूर-सरु हय-हिंसण-भीसण-जणिय-डरु अलिउल-मयगल-गुलुगुलिय-गलु रह-धरहर-सर-घुरुहुरिय-बलु घत्ता तं अग्गए पर-बलु णिय-आसणु पूरइ वढिय-कलयलु उत्तर जूरइ पच्छए अज्जुणु जमकरणु । कहिं णासमि आयउ मरणु ॥ ९ चामीयर-वाणर-धउ पवलु किलिकिलइ व गिलिइ व कुरुव-वलु रिउ-मद्दणु संदणु धरहरइ महि पूरइ जूरइ थरहरइ जलयरु णर-वयण-पवण-रडिर णं महिहरे बिज्जु-दंडु पडिउ गुणु गुजइ रुजइ मेहु जिह धणु गज्जइ भज्जइ मणि विसह ४ णर-णायहिं झायहि जगु भरिउ णीसेसु असेसु णाई डरिउ कुरु-कायह रायह धणधणई करे चडियई पडियइं पहरणई गय तुटूटइ वटइ चित्तु चलु धय-छत्तई पत्तई धरणियलु धणु-सद्द-समाहय हय जे हय रह फोडिवि मोडिवि गय जे गय ८ धत्ता ९ तो वुच्चइ दोणे उण्णय-धोणे दुक्कउ अज्जुण-जमकरणु । चितहो दुवियड्ढहो कउरव-संदहो एवहिं तुम्हह को सरणु ॥ [८] कुढे अजुणु अप्पुगु लग्गु जहि दुजोहण गोहण तत्ति कहि लइ परिहरु णिय-बरु जाहि तहु जो णासइ होसइ तासु सुहु दुणिमित्तइं कितई ण मुणियई गय पसरई विरसई ण सुणियई अहो कण्ण-विकण्ण कलिंग-सुय फेक्कारइ मारइ णाई सिव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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