Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 182
________________ उणतीसमो संधि पंच-वि पंचाणण-वर-विक्कम पंच-वि पंच-सरोवम-देहा पंच-वि पंच मेरु-गिरि-धीरा रज्जु जुहिट्ठिल-रायहो दिट्ठउ पच्छिम-काले तेहिं तउ लेवउ पंच-वि पंच-लोयवालोवम पंच-वि पंच पुरंदर जेहा पंच-वि सु-चरिय चरिम-सरीरा जं केवलिहिं आसि उधिट्ठउ गिरि सत्तुंजे मोक्खु साहेव्वउ ८ घत्ता दिवसे चउत्थए पंचमए पेक्खु पडंत पंच जम-दंड व ।। जाव ण अम्हहं पलउ किउ ताम मरंति कण्ण कर पंडव ।। १० [३] तो परिपालिय-सेवा-धम्में वुच्चइ जालंधरेण सुसम्में किं कारणु पंडवेहि वराएहि कोस-विवज्जिएहिं असहाएहिं कुरुवइ अवरु कज्जु उप्पण्णउं अच्छइ मंडलु वसु-संपुण्णउं जेण समाणु वइरु वड्डारउ जेण आसि घणु लयउ महारउ ४ सो कीयउ मारिउ गंधव्वेहि पब्बिज्जिउ भायरहि-मि सब्वेहि एवहिं थिउ विराडु एक्कल्लउ दुबलु काई करइ अइ भल्लउ गाविहिं कोडि जासु धरे दुज्झइ गोहणे लइयए को तहिं जुज्झइ तो णिय आउ-पमाणहो ढुक्के साहुक्कारिउ दुट्ठ-चउक्के धत्ता सो पेसिउ दुजोहणेण मच्छहो उप्परि गउ उक्खधे । लइयई दाहिण-गोउलई णट्ट गोव जालंधर-गंधे ॥ धणवालाहिवेण अ-विओले कंकण-खणस्वणमाण-पओट्टे कुंडल-जुवल-णिरुद्ध-कवोले कंठाहरणालंकिय-कंठे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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