Book Title: Ritthnemichariyam Part 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 190
________________ तीसमो सधि सरहसु दुज्जोहणु चालेवि गोहणु जाम जाइ फिर णिय-णयरु । तहिं काले धणुद्धरु खंडब-डामरु उत्तर गोहणे लग्गु णरु ॥ [१] तहि अवसरे पइसरे वासरहो णिसि-णिग्गमे उग्गमे दिणयरहो णवरिय पसरिय-गुण-गउरवेहिं बहु-गव्वेहि सव्वेहि कउरवेहि जयरुत्तर-उत्तर-गोउल आहिरयह गहियइ सु-विउलई धण-रिद्धिहे विद्धिहे धाइएहिं कर-कमलेहिं जमलेहि लाइएहिं ४ ओलक्खिउ अक्खिउ उत्तरहो कुढे लग्गहु मग्गहो जइ तरहो किय-कलयलु वहु-बलु विविह-धउ दुज्जोहणु गोहणु लेवि गउ तं णिसुणेवि पिसुणेविय भवणे पच्चुतरु उत्तरु देइ जणे कुढे लग्गमि मग्गमि जेण सहुं ण महारहि सारहि का-वि महु ८ धत्ता जइ परिहउ फेडइ को वि रहु खेडइ तो कुढे लग्गामे एकु जणु।। महु मरइ पुरंजउ जइ-वि धणजउ सहुं गोविंदे णेइ धणु ॥ ९ [२] सो दोवइ दोवइ कुविय मगे अमणूसउ तिण-सउ पुरु म गणे हक्कारहि सारहि अवसरहो सर-मंडवे खंडवे जो णरहो धुरे यंतउ हेतिउ अतुल-बलु रहु खेडइ फेडइ अइ-समलु सो णच्चइ वुच्चइ आयरिउ वाहुलयाव-लयालंकरिउ णटावर वट्टइ तुम्ह-घरे अप्पाणउ जुप्पइ समर-भरे जइ पउरव कउरव गिट्ठवहि तो उत्तर उत्तर पट्ठवहि 1. 3b. भा. आराहय. 2b. ज. अहिम तिवि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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